High Court बिलासपुर। संविदा कर्मचारियों की सेवा से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि संविदा कर्मियों के नौकरी की कोई गारंटी नहीं होती है। इसके बावजूद कोई संविदा कर्मचारी सेवा दे रहा है तो उसकी नौकरी समाप्त करने के लिए एक निष्पक्ष प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।कोर्ट ने कहा कि संविदा कर्मचारी को सेवा से बाहर करने से पहले उस पर लगे आरोपों का बचाव करने का उसे पूरा मौका दिया जाना चाहिए।
संविदा कर्मचारियों पर आरोप लगाकर एकपक्षीय कार्यवाही करना संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के भी विपरीत है। कोर्ट ने इसके साथ ही संविदा रोजगार सहायक की बर्खास्तगी के आदेश को रद्द कर दिया।
याददास साहू की 2016 में ग्राम रोजगार सहायक मनरेगा के पद पर संविदा नियुक्ति हुई थी। साहू की नियुक्ति डोंगरगढ़ क्षेत्र में हुई थी। काम अच्छा होने के कारण साहू को लगातार सेवा विस्तार मिलता रहा। 2022 में वह जब संविदा कर्मी के रुप में छह साल की नौकरी कर चुका था तब स्थानीय अफसरों और विधायक दलेश्वर साहू ने कदाचार का आरोप लगा दिया। आरोपों की जांच के बाद मई 2023 में उसका स्थानांतरण दूसरे पंचायत में कर दिया गया। इसके महीनेभर बाद जून 2023 में बिना किसी नोटिस या सूचना के उसे सीधे बर्खास्त कर दिया गया।
बर्खास्तगी के खिलाफ साहू ने वकील के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि दिसंबर 2022 की जांच रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को दोषमुक्त करार दिया गया था।
इसके बावजूद बिना किसी ठोस आरोप और कारण के उसे सेवा से हटा दिया गया है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि कदाचार के आधार पर बर्खास्तगी एक दंडात्मक कार्यवाही है। इसके लिए प्रक्रियागत सुरक्षा उपायों का पालन करना आवश्यक है। हाई कोर्ट ने अधिकारियों को नए सिरे से जांच की स्वतंत्रता देते हुए याचिकाकर्ता को सभी परिणामी लाभों के साथ बहाल करने का निर्देश दिया।