November 21, 2024

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जानिए कैसे सूखा से निपटने में सरकार की मदद करेगा सेटेलाईट

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रायपुर। Chaturpost.com (चतुरपोस्‍ट.कॉम)

राज्‍य में सूखा से निपटने में सरकार सेटेलाईट की मदद लेगी। राज्य के ऐसे इलाके जहां भू-जल स्तर की स्थिति अच्छी नहीं है, उन इलाकों में ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग के स्ट्रक्चर और सस्टनेबल ग्राउंड सोर्स का चिन्हांकन किया जाएगा, ताकि उन इलाकों में भू-जल संवर्धन के साथ-साथ पेयजल आपूर्ति की व्यवस्था को बेहतर किया जा सके।

अंतरिक्ष आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक का होगा उपयोग

सरकार ने राज्य के सूखा मूलक गांवों में भू-जल विकास और उपयुक्त ग्राउंड वाटर सोर्स की पहचान करने के लिए अंतरिक्ष आधारित रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करने की पहल शुरू कर दी है। इसको लेकर छत्तीसगढ़ तकनीकी विश्वविद्यालय भिलाई और छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद केंद्र के छत्तीसगढ़ अंतरिक्ष उपयोग केंद के मध्य एमओयू हुआ है।

एमओयू हस्ताक्षर के दौरान छत्तीसगढ़ तकनीकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. एमके वर्मा, विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार, छत्तीसगढ़ विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक डॉ. एस. कर्मकार, परियोजना संचालक अन्वेषक वैज्ञानिक  एमके बेग और वैज्ञानिक अखिलेष त्रिपाठी उपस्थित थे।

सेटेलाईट से मिले चित्रों का होगा उपयोग

अधिकारियों ने बताया कि तकनीक का बेहतर उपयोग सूखे की स्थिति से निपटने के लिए मददगार साबित हो सकता है। छत्तीसगढ़ के सूखा प्रभावित गांवों में भूजल विकास के लिए उच्च रिजोल्यूशन रिमोट सेंसिंग आधारित सेटेलाईट चित्रों का उपयोग कर सूक्ष्म स्तरीय हाइड्रोजियोलॉजिकल अध्ययन किया जाएगा। इसकी मदद से सूखा प्रभावित गांवों की मैपिंग की जाएगी।

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ऐसे ली जाएगी सेटेलाईट की मदद

वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं परियोजना अन्वेषक बेग ने बताया कि इसके उपयोग से 1:10,000 स्केल पर मानचित्रण का कार्य किया जाएगा। पीएचई द्वारा ग्राम स्तरीय मानचित्रण के लिए 14 ब्लॉकों की पहचान की गई है, जिसके लिए रिमोट सेंसिंग और जीआईएस तकनीकी के माध्यम से ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग स्ट्रक्चर का चिन्हांकन किया जाएगा।

सुदूर संवेदन एवं जीआईएस आधारित मानचित्रों से लाभ  

लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग सेटेलाईट से प्राप्‍त मानचित्रों का उपयोग नए भू-जल स्त्रोतों के सृजन करने में करेगा, ताकि सूखा प्रभावित गांवों में ग्राउंड वाटर रिसोर्स की पहचान कर समस्या का समाधान किया जा सके।

सेटेलाईट के आंकड़े किसी क्षेत्र के भू-भाग में भू-जल उपलब्धता की स्थिति का एक संक्षिप्त चित्र उपलब्ध कराते हैं, जो किसी अन्य माध्यम या तकनीकी से संभव नहीं है। यह सूचना समय और मूल्य प्रभावी होने के साथ-साथ अधिक सटीक होती है उपग्रह चित्रों के प्रयोग द्वारा क्षेत्रीय नियंत्रण के साथ संरचनात्मक सूचनाओं का आसानी से सीमांकन किया जा सकता है।

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