Land Records: जानिए..कैसे होगा वन भूमि का नामांतरण, सीमांकन और बटवारा
1 min readLand Records: रायपुर। छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार ने वन अधिनियम के तहत पट्टाधारियों को अब नामांतरण, सीमांकन, बटवारा और त्रुटि सुधार की सुविधा देने जा रही है। इसके लिए नियम बना लिए गए हैं और कैबिनेट से भी मंजूरी मिल गई है। इससे प्रदेश के हजारों किसानों को फायदा होगा।
जानिए क्या है…वन अधिकारों की मान्यता अधिनियम 2006
अफसरों ने बताया कि अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 छत्तीसगढ़ में वर्ष 2008 में लागू किया गया था। इस अधिनियम का उद्देश्य वनों में निवास करने वाली अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासियों को काबिज पैतृक भूमि पर वन अधिकारों की मान्यता प्रदाय करना है, जिसमें काबिज भूमि के अधिभोग का अधिकार भी है, जिससे उनकी खाद्य सुरक्षा एवं आजीविका को सुनिश्चित किया जा सके। इसके साथ ही स्थानीय समुदाय के माध्यम से वनों की सुरक्षा, संरक्षण एवं प्रबंधन को सुदृढ़ करते हुए पारिस्थितिकीय संतुलन बनाये रखना भी इस अधिनियम का उद्देश्य है।
जानिये..छत्तीसगढ़ में दिए गए हैं कितने वन अधिकार पत्र
छत्तीसगढ़ में कुल 4 लाख 81 हजार 324 व्यक्तिगत वन अधिकार 3 लाख 84 हजार 727 हेक्टेयर वन भूमि में वितरित किया जा चुका है। अब तक लगभग 9739 वन अधिकार पत्रधारकों की मृत्यु हो जाने के कारण उनके विधिक वारिसानो के नाम भूमि का हस्तांतरण किये जाने की आवश्यकता है।
Land Records: जानिए..क्यों नहीं हो पा रहा था नामांतरण
वन अधिकार अधिनियम, 2006 धारा 4 (1) अनुसार वन अधिकार पत्रधारकों की मृत्यु होने की दशा में उनके वंशजो / वारिसानों को वंशानुगत रुप से वन भूमि के हस्तांतरण के संबंध में उल्लेख है किन्तु मूल दावाकर्ता की मृत्यु होने पर उसे जारी वन अधिकार पत्र में संशोधन किये जाने के बारे में वन अधिकार अधिनियम / नियमों में कोई प्रावधान का उल्लेख नहीं है। वन अधिकार के पत्रधारक की मृत्यु होने पर उसके वारिसान को काबिज भूमि नामांतरित करने के संबंध में प्रक्रिया का उल्लेख वन अधिकार के नियमों में नहीं है। इससे हमारे पत्रधारकों को नामांतरण, सीमांकन, खाता विभाजन जैसे कार्यो में अत्यंत कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
जानिए..कैसे होगा नामांतरण सहित अन्य काम
नोडल विभाग आदिम जाति तथा अनुसूचित जाति विकास विभाग द्वारा कार्यवाही करते हुए राजस्व एवं वन विभाग के सहयोग से फौती नामांतरण की प्रक्रिया को तैयार किया गया है, जिसके अनुसार व्यक्तिगत वन अधिकार प्राप्त पत्रधारकों की मृत्यु / फौत होने पर वारिसानों के नाम पर काबिज वन भूमि का नामांतरण एवं राजस्व एवं वन अभिलेखो में दर्ज करने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है। इसमें वन अधिकार पत्रधारक का निधन होने पर उनके विधिक वारिसानों के द्वारा काबिज वन भूमि, जिस विभाग के अभिलेखों में दर्ज है, उस विभाग यथा राजस्व विभाग हेतु तहसीलदार एवं वन विभाग हेतु रेंज आफिसर को घोषणा पत्र, वन अधिकार पत्रधारक का मृत्यु प्रमाण पत्र, वारिसानों का आधार कार्ड, मोबाईल नंबर / संपर्क नंबर के साथ आवेदन किया जावेगा।
Land Records: जानिऐ.. नामांतरण के लिए कैसे कर सकते हैं आवेदन
फौती नामांतरण के संबंध में आवेदन पत्र प्राप्त होने पर राजस्व वन भूमि के मामले में तहसीलदार एवं वन विभाग की भूमि के मामले में रेंज आफिसर के द्वारा संबंधित भू-अभिलेख के कैफियत कॉलम में दर्ज प्रविष्टि में संशोधन किया जायेगा। नामांतरण के अतिरिक्त वन अधिकार मान्यता पत्रकधारी के जीवनकाल में उनके द्वारा प्रस्तावित या उसकी मृत्यु के उपरांत विधिक वारिसानों के मध्य खाता विभाजन के लिए प्रक्रिया अनुसार विधिक वारिसानों के मध्य वन अधिकार पत्र की वन भूमि के बंटवारे की कार्यवाही की जाएगी। सरकारी नक्शों में मान्य वन अधिकारों के सीमांकन की कार्यवाही की जाएगी।
राजस्व विभाग की भूमिका… Land Records:
राजस्व/ वन विभाग के अभिलेखों में वन अधिकारों को अभिलिखित / दर्ज करने की कार्यवाही की जाएगी। अभिलेखों में वन अधिकार पत्रधारकों की गलत जानकारी दर्ज होने की स्थिति में वन विभाग के मामले में रेंज आफिसर एवं राजस्व विभाग के मामले में तहसीलदार कार्यवाही हेतु अधिकृत होंगे। हितबद्ध व्यक्ति / वारिसान द्वारा तहसीलदार के निर्णय के विरुद्ध अनुविभागीय अधिकारी (रा.) द्वारा तथा रेंज आफिसर के निर्णय के विरुद्ध उप वनमण्डलाधिकारी को अपील की जा सकेगी। निराकरण की समय-सीमा तीन माह होगी।
इन धाराओं का रखना होगा ध्यान
इस प्रक्रिया में राजस्व विभाग द्वारा भू-राजस्व संहिता की धारा 110, 115, 129 एवं 178 के प्रावधानों को भी ध्यान में रखा गया है, जबकि वन विभाग द्वारा ऐसा कोई प्रावधान पूर्व में नहीं होने के कारण नवीन रुप से प्रक्रिया निर्धारित की गई है। मंत्री परिषद के इस निर्णय से भविष्य में राज्य के लाखों व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रधारकों को और उनके वंशजों को नामांतरण के संबंध में हो रही कठिनाई दूर होगी एवं उनके नाम पर नामांतरण, खाता विभाजन, सीमांकन आदि में सुविधा होगी।