Ratan Tata: छत्तीगसढ़ में विरोध की आंधी में उड़ गया टाटा का स्टील प्लांट, पढ़िए..टाटा के प्रोजेक्ट की पूरी कहानी
1 min readRatan Tata: रायपुर। टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी यादें हमेशा बनी रहेगी। रतन टाटा संभवत: कभी छत्तीसगढ़ नहीं आए, लेकिन छत्तीगसढ़ के इतिहास के साथ टाटा समूह का भी नाम जुड़ा हुआ है।
छत्तीगसढ़ में जब भी बस्तर के विकास और औद्योगिकरण की बात होगी टाटा समूह की चर्चा जरुर होगी। क्योंकि टाटा ही वह पहला समूह है जिसने घोर नक्सल प्रभावित बस्तर में निवेश करने में रुचि दिखाई थी।
छत्तीगसढ़ में टाटा का स्टील प्लांट वर्ष 2000 में छत्तीगसढ़ राज्य बनने के बाद बस्तर संभाग में नक्सलवाद भी तेजी से बढ़ने लगा। 2005 के बाद लगभग हर रोज बस्तर से मुठभेड़ की खबरें आने लगीं। यह वह दौर था, जब छत्तीगसढ़ का बेहद तेज गति से औद्योगकरण हो रहा था।
स्टील और पॉवर प्लांट की स्थापना के लिए बड़े-बड़े समौते हो रहे थे। लेकिन इसमें से अधिकांश प्रोजेक्ट प्रदेश के मैदानी क्षेत्रों, रायपुर, दुर्ग, रायगढ़, जांजगीर और बिलासपुर जैसे जिलों के लिए थे। कोई भी निवेशक बस्तर जैसे अशांत क्षेत्र में जाना नहीं चाहता था।
बस्तर में कहां था टाटा का प्लांट लगाने का प्रस्ताव
इसी दौरान टाटा समूह का छत्तीसगढ़ आगमन हुआ। बस्तर में बड़े लौह अयस्क के भंडार को देखते हुए टाटा ने बस्तर में ही निवेश की इच्छ जताई। टाटा देश का सबसे बड़ा स्टील प्लांट वहां लगाना चाह रहा था। 2005 में इसके लिए टाटा समूह और राज्य सरकार के बीच एमओयू हुआ।
टाटा के प्लांट के लिए बस्तर लोहंडीगुड़ा तहसील में जमीन की पहचान की गई। इस परियोजना में तहसील के आधा दर्जन से ज्यादा गांव आ रहे थे। इनमें बेलियापाल, बंडाजी, छिंदगांव, कुम्हली, धुरागांव दाबपाल, बड़े परोदा, बेलर और सिरिसगुड़ा के साथ तोकापाल तहसील के टाकरगुड़ा गांव शामिल थे।
Ratan Tata बस्तर में क्यों नहीं लग पाया टाटा का प्लांट
टाटा के प्रोजेक्ट के लिए करीब 2013 हेक्टेयर जमीन चिन्हित की गई। इसमें 1707 लोगों की 1764.61 हेक्टयर निजी जमीन के साथ 105 हेक्टेयर वनभूमि और 173 हेक्टयर सरकारी जमीन शामिल थी। एमओयू के बाद छत्तीगसढ़ औद्योगिक विकास निगम (सीएसआईडीसी) के जरिये जमीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू हुई।
1707 लोगों में से 1165 ने जमीन का मुआवजा ले लिया, लेकिन 542 लोग जमीन नहीं देने पर अड़ गए। इसके कारण प्रोजेक्ट का काम पूरी तरह शुरू नहीं हो पाया। टाटा समूह इस दौरान बस्तर के विकास में लगातार सहयोग करता रहा। बस्तर के युवाओं को टाटा ले जाकर उन्हें विभिन्न ट्रेडों की ट्रेनिंग दी गई। उन्हें रोजगार का वादा किया गया।
इतना ही नहीं सीएसआर के तहत कई काम किए गए। इसके बावजूद 542 लोग जमीन देने को राजी नहीं हुए। कहा जाता है कि नक्सलियों के दबाव के कारण टाटा के प्रोजेक्ट का विरोध हुआ। करीब 11 साल तक इंतजार करने के बाद टाटा ने 2016 में बस्तर में अपना प्रोजेक्ट रद्द कर दिया।
ओडिशा में कहां है टाटा का स्टील प्लांट
टाटा ने छत्तीगसढ़ के साथ ही ओडिशा में भी निवेश का प्रस्ताव दिया था। ओडिशा कलिंगनगर जाजपुर में टाटा ने 2008 में नया स्टील प्लांट लगाना शुरू किया। 3 मिलियन टन उत्पादन क्षमता वाले इस प्रोजेक्ट का काम 2014-15 में पूरा हो गया। इधर, 2019 में छत्तीगसढ़ की कांग्रेस सरकार ने टाटा के स्टील प्लांट के लिए अधिग्रहित जमीन जमीन मालिकों को लौटा दी।