October 18, 2024

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Revenue Court: जमीन विवादों को निपटाने नया नियम: गजट में हुआ प्रकाशन, दावा-आपत्ति आमंत्रित

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Revenue Court: जमीन विवादों को निपटाने नया नियम: गजट में हुआ प्रकाशन, दावा-आपत्ति आमंत्रित

Revenue Court: रायपुर। राजस्‍व प्रकरणों के निराकरण के लिए विष्‍णुदेव साय सरकार नया नियम बनाया है। सरकार की तरफ से इसका गजट नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है। साथ ही लोगों से दावा अपित्‍त आमंत्रित की गई है। सरकार का दावा है कि नए नियमों में  मामलों का निराकरण में आधुनिक तकनीकों का प्रयोग किया जाएगा, इससे विवाद का निराकरण तेजी से होगा।

जानिए.. कितने दिनों में होगा फैसला

नए नियम लागू होने के बाद एक पेशी के बाद दूसरी पेशी 21 दिनों के अंदर होगी। वहीं, प्रकरण का निराकरण या फैसला 6 महीने के अंदर हो जाएगा। यदि कोई पक्षकार नोटिस लेने के लिए उपलब्‍ध नहीं होता है तो उसके घर पर चस्‍पा कर दी जाएगी।

Revenue Court:  देखिए सरकार का नोटिफिकेशन

नियम प्रारूप

1. संक्षिप्त नाम, विस्तार एवं प्रारंभ.

(1) ये नियम राजस्व न्यायालयों की कार्यपद्धति के नियम, 2024 कहलायेंगे।

(2) ये नियम छत्तीसगढ़ राज्य के सभी राजस्व न्यायालयों में लागू होंगे।

(3) ये नियम राजपत्र में इनके प्रकाशन की तारीख से प्रवृत्त होंगे।

Revenue Court: 2. परिभाषाएं- इन नियमों में, जब तक कि संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,-

(1) “आवेदन” से अभिप्रेत संहिता के अधीन कार्यवाही शुरू करने हेतु किसी व्यक्ति द्वारा दिये गए आवेदन से है एवं इसमें अपील, पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन हेतु याचिका सम्मिलित हैं;

(2) “संहिता” से अभिप्रेत है छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 (क्र. 20 सन् 1959);

(3) “न्यायालय” से अभिप्रेत है संहिता की धारा 31 के अधीन सभी राजस्व न्यायालय;

(4) “ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली” से अभिप्रेत है राजस्व न्यायालयों के लिए संचालित ऑनलाइन प्रबंधन एवं पर्यवेक्षण प्रणाली;

(5) “इलेक्ट्रॉनिक/ डिजिटल संदेश सेवा” से अभिप्रेत है ई-मेल या लघु संदेश सेवा (एस.एम.एस) के द्वारा या ऐसे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम, जिसे राज्य सरकार समय समय पर अनुज्ञात करे, के माध्यम से प्रेषित सूचना/सन्देश;

(6) “लोक सेवा केंद्र” से अभिप्रेत है लोकसेवा प्रदान किए जाने के लिए राज्य सरकार द्वारा स्थापित या मान्यता प्राप्त सेवा केंद्र,

(7) “अवयस्क” से अभिप्रेत है ऐसा व्यक्ति जिसने भारतीय वयस्कता अधिनियम, 1875 (1875 का 9) की धारा 3 के अधीन वयस्कता प्राप्त नहीं की है,

(8) “पक्षकार” से अभिप्रेत है पक्षकार के साथ-साथ उसके द्वारा प्राधिकृत मान्यताप्राप्त अभिकर्ता, विधि व्यवसायी एवं किसी अवयस्क या/और मानसिक रुग्णता से ग्रस्त व्यक्ति के संरक्षक;

(9) “मानसिक रुग्णता से ग्रस्त व्यक्ति” से अभिप्रेत है ऐसा व्यक्ति जो मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम, 2017 (2017 का 10) के अधीन यथा परिभाषित है;

(10) “वाचक” से अभिप्रेत है लिखित कार्य विभाजन के अधीन न्यायालय में वाचक / प्रस्तुतकार के रूप में या उनके सहायक के रूप में कार्यरत कर्मचारी,

(11) “मूल आवेदन” मूल आवेदन से आशय किसी मूल कार्यवाही को प्रारंभ करने के लिए संहिता के प्रावधानों के अधीन प्रस्तुत किए जाने वाला आवेदन से है,

(12) “प्राधिकृत व्यक्ति” संहिता की धारा 39 में विनिर्दिष्ट व्यक्ति द्वारा, राजस्व न्यायालयों के समक्ष आवेदन एवं अन्य कार्य किए जाएंगे।

3. आवेदन प्रस्तुत किए जाने के लिए न्यायालय. मूल आवेदन संहिता के प्रावधानों के अनुरूप विचारण हेतु सक्षम निम्नतम न्यायालय में ही प्रस्तुत किए जाएंगे।

Revenue Court:  जानिए…राजस्‍व कोर्ट में कैसे करें आवेदन

4 आवेदन की प्रस्तुति –

(1) राजस्व न्यायालयों को लोकसेवा केंद्रों एवं नागरिक पोर्टल के माध्यम से इलेक्ट्रॉनिक/डिजीटल फार्म में आवेदन प्रस्तुत किए जा सकेंगे जो संबंधित पीठासीन अधिकारी के आई डी. अंतर्गत पोर्टल में दर्शित होंगे। पीठासीन अधिकारी ऐसे आवेदन प्राप्त होने पर सुनवाई की तिथि निश्चित करेगा और प्रथम सुनवाई तिथि पर प्राप्त ऐसे आवेदनों की हस्ताक्षरित भौतिक प्रति आवेदक से प्राप्त कर इसे स्कैन कर के पोर्टल पर अपलोड करेगा।

(2) आवेदन संबंधित पीठासीन अधिकारी को या उनकी अनुपस्थिति में न्यायालय के वाचक को व्यक्तिशः या डाक द्वारा दो प्रतियों में प्रस्तुत किए जा सकेंगे।

(3) आवेदन की एक प्रति प्राप्त करने के पश्चात् दूसरी प्रति पीठासीन अधिकारी / वाचक द्वारा हस्ताक्षरित पावती स्वरुप आवेदक को वापस की जाएगी।

(4) आवेदन प्राप्त करने वाला अधिकारी/कर्मचारी, आवेदन पत्र पेश करने वाले व्यक्ति का नाम या डाक के द्वारा प्राप्त होने पर उस पर इस आशय के तथ्य का पृष्ठांकन एवं आवेदन प्राप्त करने का स्थान दर्शित करते हुए हस्ताक्षर एवं तिथि उल्लिखित करेगा।

(5) आवेदन प्राप्त होते ही वाचक की यह जिम्मेदारी होगी कि वह मामले के प्राप्त होने के 24 घंटे के भीतर इसे ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली में दर्ज करे।

(6) जहां तक संभव हो, आवेदन पर प्राथमिक सुनवाई आवेदन प्राप्त करने के ही दिन कर ली जाये, तथापि यदि आवेदन प्रस्तुत किए जाने की तिथि पर उसकी प्रथम सुनवाई संभव नहीं हो तो उस पर सुनवाई के लिए अगली तिथि निश्चित की जायेगी जिसकी सूचना पक्षकारों को दी जाएगी।

(7) वरिष्ठ न्यायालयों के आदेश पर या अधीनस्थ किसी कर्मचारी से प्रतिवेदन प्राप्त होने पर या स्व-प्रेरणा से भी न्यायालयों द्वारा प्रकरण का पंजीयन किया जा सकेगा।

Revenue Court: आवेदन की अपेक्षाएं.-

(1) प्रत्येक आवेदन नियम 3 और 4 के प्रावधानों के अनुसार, आवेदक या याचिकाकर्ता द्वारा दिनांक सहित हस्ताक्षरित कर प्रस्तुत किया जाएगा।

(2) आवेदक द्वारा मान्यता प्राप्त अभिकर्ता या विधि व्यवसायी प्राधिकृत किये जाने पर इस हेतु निष्पादित मूल दस्तावेज आवेदन के साथ संलग्न करना अनिवार्य होगा।

(3) किसी आदेश के निष्पादन या किसी अधीनस्थ न्यायालय की कार्यवाहियों पर स्थगन के आवेदन में आवेदक के पक्ष में सुविधा का संतुलन, उनको होने वाली अपूर्णीय क्षति और कोई भूल या गलती जो अभिलेख को देखने से स्पष्ट प्रकट हो का उल्लेख किया जाएगा और ऐसे आवेदन को अपील, पुनरीक्षण या पुनर्विलोकन के आवेदन का भाग नहीं बनाया जा सकेगा। ऐसे आवेदन पृथक से प्रस्तुत किये जायेंगे एवं शपथ पत्र से समर्थित होंगे।

(4) प्रत्येक आवेदन के साथ, शपथपत्र एवं ऐसे दस्तावेज जिन पर आवेदक का दावा आधारित है की स्व-प्रमाणित प्रति प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा। आवेदक ने जो दस्तावेज आवेदन के साथ प्रस्तुत किए हैं उनकी मूल प्रति वाद बिन्दुओं के निर्धारण के पश्चात प्रस्तुत करना अनिवार्य होगा।

(5) प्रत्येक आवेदन के साथ, इस नियम द्वारा निर्धारित शुल्क संलग्न किया जायेगा। आवेदन हेतु शुल्क 10 रूपये प्रति आवेदन होगा एवं प्रकरण अंतर्गत किसी विविध आवेदन के लिए 5 रूपये प्रभारित किया जा सकेगा। आदेशिकाओं या सूचना-पत्रों की तामिली हेतु 5 रूपये प्रति व्यक्ति प्रभारित किया जा सकेगा। उद्घोषणा (सार्वजनिक सूचना) के लिए 10 रूपये प्रभारित किया जा सकेगा।

(6) पीठासीन अधिकारी शासन का हित ध्यान में रखते हुए शपथपत्र एवं शुल्क के बिना भी आवेदन/सूचना का संज्ञान ले सकेगा।

6. वाचक प्रत्येक प्राप्त आवेदन को निर्धारित शीर्ष में ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली में दर्ज करेगा।

Revenue Court: 7. मान्यताप्राप्त अभिकर्ता.-

(1) मान्यताप्राप्त अभिकर्ता, संबंधित पक्षकार का स्थायी सेवक, साझेदार, रिश्तेदार या मित्र या कोई अन्य व्यक्ति हो सकेगा जो वादग्रस्त विषय पर स्वयं की जानकारी से या पक्षकार के संपर्क से उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए युक्तिसंगत हो।

(2) यह निर्णय करने में कि कोई व्यक्ति मान्यताप्राप्त अभिकर्ता के रुप में मान्य किए जाने हेतु युक्तियुक्त है, पीठासीन अधिकारी अधिवक्ता अधिनियम, 1961 (क्र. 25 सन् 1961) के प्रावधानों को ध्यान में रखेगा एवं अपने विवेक का ऐसा प्रयोग करेगा जिससे किसी भी एक व्यक्ति द्वारा अनेक नियोक्ताओं की ओर से अधिकार पत्र लिये जाने से रोका जा सके।

Revenue Court: 8. विधि व्यवसायी. –

(1) कोई विधि व्यवसायी संहिता के तहत किसी कार्यवाही पर किसी पीठासीन अधिकारी के समक्ष किसी पक्षकार के लिये विधि व्यवसायी का कार्य नहीं कर सकता यदि उसे पक्षकार ने या पक्षकार के मान्यता प्राप्त अभिकर्ता ने लिखित विलेख के द्वारा नियुक्त नहीं किया हो।

(2) पीठासीन अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत विधि व्यवसायी की नियुक्ति, नियुक्ति समाप्त करने हेतु पक्षकार या विधि व्यवसायी द्वारा स्वहस्ताक्षरित विलेख देने तक या विधि व्यवसायी या उस पक्षकार के मृत्यु पर्यन्त या प्रकरण में कार्यवाहियों की समाप्ति तक प्रवृत्त रहेगी।

(3) उपरोक्त प्रयोजनों के लिए प्रकरण में कोई आदेश की अपील, पुनरीक्षण, पुनर्विलोकन के लिये आवेदन एवं दस्तावेज की प्रतिलिपि प्राप्त करने या प्रकरण में प्रस्तुत दस्तावेज को वापस किये जाने या प्रकरण के बारे में पीठासीन अधिकारी के समक्ष अदायगी की हुई रकम के प्रत्यर्पण के उद्देश्यार्थ किसी भी आवेदन या कृत्य, प्रकरण की कार्यवाही मानी जायेगी।

(4) कोई विधि व्यवसायी, जो पक्ष निवेदन के प्रयोजनार्थ नियुक्त है, किसी भी पक्षकार की ओर से पक्ष निवेदन नहीं कर सकेगा, जब तक उसने पीठासीन अधिकारी के समक्ष उपस्थित होकर ऐसा स्वहस्ताक्षरित ज्ञापन प्रस्तुत नहीं किया हो एवं जिसमें निम्नलिखित बिन्दुओं का उल्लेख हो-

(क) प्रकरण के पक्षकारों का नाम एवं सरल क्रमांक,

(ख) उस पक्षकार का नाम जिसके लिए वह हाजिर हुआ है, एवं

(ग) उस व्यक्ति का नाम जिसके द्वारा उसे उपस्थित होने के लिए प्राधिकृत किया है:

परन्तु यह कि किसी ऐसे अन्य विधि व्यवसायी द्वारा विधिक रूपेण नियुक्त किसी विधि-व्यवसायी

पर यह लागू नहीं होगा, जिसे ऐसे पक्षकारगण की ओर से पीठासीन अधिकारी के समक्ष कार्य करने के

लिए विधिक रूपेण नियुक्त किया गया हो।

9. अवयस्कों तथा मानसिक रुग्णता से ग्रस्त व्यक्ति द्वारा या उनके विरूद्ध कार्यवाही. –

(1) अवयस्क द्वारा प्रत्येक आवेदन, अवयस्क के संरक्षक के रूप में कार्य करने वाले व्यक्ति द्वारा उसके नाम से दिया जाएगा।

(2) जहाँ अनावेदक अवयस्क है, वहाँ राजस्व अधिकारी उसकी अवयस्कता के तथ्य के बारे में अपना समाधान हो जाने पर किसी उपयुक्त व्यक्ति को कार्यवाहियों के प्रयोजन के लिए अवयस्क का संरक्षक नियुक्त करेगा।

(3) कोई भी व्यक्ति, जो स्वस्थचित्त है तथा वयस्क हो गया है और जिसका हित अवयस्क के हित के प्रतिकूल नहीं है, कार्यवाहियों में अवयस्क पक्षकार के संरक्षक के रूप में कार्य कर सकेगा।

(4) उस दशा में, जहां अनावेदक अवयस्क हो और नियुक्त किए गए संरक्षक के पास आवश्यक व्ययों की पूर्ति के लिए कोई निधियों न हों, राजस्व अधिकारी आवेदक को यह निदेश दे सकेगा कि वह उस प्रयोजन के लिए पर्याप्त धनराशि जमा करे। आवेदक द्वारा इस प्रकार उपगत किए गए खर्चे, खर्चे के संबंध में पारित किए गए अंतिम आदेश के अनुसार समायोजित किए जाएँगे।

(5) कोई भी संरक्षक अवयस्क की ओर से कोई करार या समझौता उन कार्यवाहियों के बारे में जिनमें वह अवयस्क के संरक्षक के रूप में कार्य करता है, राजस्व अधिकारी की इजाजत के बिना नहीं करेगा जो इजाजत कार्यवाहियों में स्पष्टतया अभिलिखित की जाएगी।

(6) राजस्व अधिकारी की ऐसी अभिलिखित इजाजत के बिना किया गया कोई भी ऐसा करार या समझौता

अवयस्क से भिन्न समस्त पक्षकारों के विरूद्ध शून्यकरणीय होगा।

(7) इस नियम में अंतर्विष्ट उपबंध, यथावश्यक परिवर्तन सहित, मानसिक रुग्णता से ग्रस्त व्यक्तियों को लागू होंगे।

Revenue Court: 10. आवेदन की ग्राह्यता. –

(1) आवेदन प्राप्त होने पर संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत आवेदनों का ग्रहण एवं प्रकरणों का संज्ञान उस पर विचार के लिए सक्षम निम्नतम न्यायालय द्वारा किया जाएगा।

(2) प्रकरणों की उन श्रेणियों के आवेदन जिन्हें नियमों द्वारा या कलेक्टर के लिखित्त आदेश द्वारा ऐसा विहित्त किया जाये तो निम्नतम न्यायालय द्वारा ग्रहण एवं सम्यक जाँचोपरान्त प्रतिवेदन के साथ उनके निराकरणार्थ सक्षम न्यायालय में प्रकरण प्रस्तुत किया जा सकेगा।

(3) यदि अधिकारिता क्षेत्र के बाहर के कोई प्रकरण त्रुटिवश किसी अन्य न्यायालय में दर्ज कर लिए जाते हैं तो ऐसे प्रकरण प्रस्तुति के 15 दिन के भीतर ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली के द्वारा उचित न्यायालय में अंतरित कर दिये जाएंगे।

(4) आवेदन, रिपोर्ट या आदेश प्राप्त होने के 01 माह के भीतर ग्राह्यता का अवधारण करते हुए, ग्राह्य पाए जाने पर पीठासीन अधिकारी द्वारा कार्यवाही प्रारंभ की जाएगी।

Revenue Court: 11. पुनर्विलोकन के आवेदन पर कार्यवाही.-

(1) पुनर्विलोकन के आवेदन उस पीठासीन अधिकारी के न्यायालय में ही प्रस्तुत किये जाएंगे जिनके आदेश का पुनर्विलोकन किया जाना अपेक्षित है। आवेदन के एक माह के भीतर पीठासीन अधिकारी पुनर्विलोकन करने या नहीं करने के विषय में आधार लेखबद्ध करते हुए प्रस्थापना करेगा।

(2) पीठासीन अधिकारी द्वारा पुनर्विलोकन करने की प्रस्थापना किये जाने पर, जहाँ सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी आवश्यक है, मूल प्रकरण में ही प्रस्थापना के आधारों को स्पष्ट लेख करते हुए सक्षम प्राधिकारी को प्रकरण प्रेषित करेगा। सक्षम प्राधिकारी प्रस्थापना के आधारों एवं प्रकरण के दस्तावेजों के आधार पर एक माह के भीतर पुनर्विलोकन पर अनुमति के विषय में अपना निर्णय देगा।

12. प्रकरण पंजी. प्रत्येक राजस्व न्यायालय के प्रकरणों की दायरा पंजी संबंधित ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली में ही संधारित होगी, जिसमें शीर्षवार एवं दिनांकवार प्रकरणों का विवरण अद्यतन होगा। प्रत्येक वर्ष माह मार्च, एवं सितम्बर के अंतिम कार्य दिवस में पीठासीन अधिकारी द्वारा अपने न्यायालय की ऑनलाइन दायरा पंजी का सत्यापन किया जायेगा। दायरा पंजी का संधारण भौतिक रूप से नहीं किया जायेगा।

13. प्रतिवेदन या अभिलेख लेना. आवश्यक होने पर, प्रकरण से सुसंगत बिन्दुओं पर अभिलेख एवं स्थल के निरीक्षण का प्रतिवेदन अधीनस्थ अधिकारी/कर्मचारी से लिया जा सकेगा तथा अधीनस्थ न्यायालय का अभिलेख मंगाया जा सकेगा। भूमि से सम्बंधित समस्त प्रकरणों में भू-अभिलेखों की प्रतियाँ संलग्न करना अनिवार्य होगा।

Revenue Court: 14. उद्घोषणा का प्रकाशन. –

(1) जब कभी इस संहिता के अधीन कोई उदघोषणा जारी की जाये तो उसकी प्रतिलिपियाँ उसे जारी करने

वाले पीठासीन अधिकारी के कार्यालय के सूचना बोर्ड पर, उस तहसील के जिसके भीतर उद्घोषणा से संबंधित भूमि स्थित है, मुख्यालय पर और उस उद्घोषणा से संबंधित भूमि पर के या उसके समीप के किसी लोक समागम के स्थान पर लगाई जाएगी और यह उद्घोषणा ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली पर भी प्रकाशित की जाएगी।

(2) प्रकरण, जिसमें पक्षकार को सूचना की तामीली नहीं हो सके, पीठासीन अधिकारी के लिखित आदेश से समाचार-पत्र में उद्घोषणा आवेदक के खर्च पर प्रकाशित की जा सकेगी।

(3) यदि उद्घोषणा में कोई ऐसी त्रुटि हो गयी हो जिसमें वाद-ग्रस्त संपत्ति की विशिष्टियां या पक्षकार के नाम परिवर्तित हो रहे हो, तो उद्घोषणा पुनः जारी की जाएगी।

Revenue Court: जानिए… सुनवाई के लिए क्‍या है नियम

15. सुनवाई दिनांक एवं स्थान का निर्धारण.-

(1) सुनवाई के लिये दिनांक संबंधित न्यायालय के पीठासीन अधिकारी द्वारा ही निर्धारित किया जाएगा एवं

इसकी सूचना आवेदक या उसके अधिवक्ता को या यथावश्यक पक्षकारों को दी जाएगी ।

(2) सुनवाई का स्थान परिवर्तित होने पर भी आवेदक या उसके अधिवक्ता को या यथावश्यक पक्षकारों को सूचित किया जायेगा।

(3) यदि पीठासीन अधिकारी किसी कारणवश निर्धारित तिथि पर प्रकरण की सुनवाई के लिए उपलब्ध नहीं हो एवं कार्यालय में अन्य राजस्व अधिकारी सुनवाई की आगामी तिथि देने हेतु उपस्थित नहीं हो तो ऐसी स्थिति में प्रस्तुतकार प्रकरणों में औपचारिक तिथि दे सकेगा।

(4) सुनवाई उपरांत प्रकरण में सुनवाई की आगामी तिथि 21 दिन से अधिक अवधि की नहीं होनी चाहिए।

Revenue Court: 16. पक्षकारों को सूचना और उसकी तामिली. –

(1) जब प्रकरण विचार हेतु स्वीकार कर लिया गया हो तो संबंधित पक्षकार द्वारा अन्य पक्षकारगण को सूचना प्रदान किये जाने हेतु आदेशिका शुल्क की अदायगी 07 दिवसों में की जायेगी। संबंधित न्यायालय इस अवधि में अधिकतम 15 दिवस का अतिरिक्त समय दे सकेगा।

(2) प्रत्येक सूचना की तामील संबंधित पक्षकार को एक प्रति व्यक्तिशः अथवा उसके कार्यालय में या उस स्थान पर, जहां वह मामूली तौर पर निवास करता है या नियमित रूप से कार्यरत है, देकर की जाएगी।

(3) राजस्व न्यायालय सूचना की प्रति संबंधित तहसील के मृत्य, पटेल या कोटवार के माध्यम से पक्षकार को प्रेषित कर सूचना तामीली करा सकेगा। अतिरिक्त प्रति को तामीलीकर्ता उसमें प्राप्तकर्ता का नाम, पक्षकार से संबंध, उम्र एवं तामीली दिनांक उल्लेख करते हुए प्राप्तकर्ता एवं तामीलीकर्ता के हस्ताक्षर सहित तामीली रिपोर्ट के रूप में लौटाएगा। प्राप्तकर्ता के रूप में कोई वयस्क स्वस्थचित्त व्यक्ति नहीं होने पर, पक्षकार के निवास स्थान के सहजदृश्य दीवार पर सूचना की प्रति चस्पा करते हुए, तामीलीकर्ता अतिरिक्त प्रति को उस पर चस्पा करने का कारण, समय, दिनांक एवं चस्पा करने के गवाह के रूप में एक वयस्क स्वस्थचित्त व्यक्ति का नाम, उम्र, पता व हस्ताक्षर दर्ज कर लौटाएगा।

(4) पक्षकार द्वारा स्वयं उपलब्ध कराए गए या पक्षकारों के शासकीय दस्तावेजों में उपलब्ध डिजीटल संपर्क माध्यम, ई-मेल या लघु संदेश सेवा (एस.एम.एस.) पर सूचना पीठासीन अधिकारी के कार्यालय द्वारा प्रेषित किया जा सकेगा और सूचना प्रेषित होने की डिजीटल पावती की प्रति तामीली रिपोर्ट के रूप में मान्य कर प्रकरण में अपलोड की जा सकेगी।

(5) आदेशिकाओं या सूचना पत्रों की तामीली शासकीय पंजीकृत डाक या स्पीड पोस्ट के द्वारा की जा सकेगी। इस हेतु होने वाला वास्तविक व्यय आवेदक पक्षकार के द्वारा वहन किया जायेगा। सूचना की तामिली के रूप में प्राप्ति अभिस्वीकृति या भारतीय डॉक पोर्टल से प्राप्त डिलीवरी रिपोर्ट की प्रति को मान्य किया जायेगा।

(6) भारत के बाहर सूचना पत्रों की तामीली सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) की धारा 29 के प्रावधानों के अनुसार हो सकेगी।

17. पक्षकारों की उपस्थिति की पुष्टि. किसी सुनवाई की तिथि में पक्षकारों के उपस्थिति की पुष्टि आदेश पत्रिका के हशिये में हस्ताक्षर द्वारा या इस हेतु निर्धारित पंजी में हस्ताक्षर द्वारा या इस संबंध में विनिश्चित तकनीक के माध्यम से की जाएगी।

18. वाद-सूची. राजस्व न्यायालय की दैनिक वाद-सूची इस हेतु निर्धारित ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली एवं सूचना फलक पर सुनवाई दिनांक पर सुनवाई के पूर्व ही प्रदर्शित की जायेगी जिससे पक्षकारों को सुनवाई के क्रम एवं कार्यवाही की जानकारी हो सके। दैनिक वाद सूची ई कोर्ट प्रबंधन प्रणाली से ही तैयार की जाएगी एवं इसे अन्य भौतिक माध्यम से तैयार नहीं किया जायेगा।

Revenue Court:  19. सुनवाई का अवसर.-

(1) जाँचकर्ता अधिकारियों को राजस्व प्रकरणों में अपना प्रतिवेदन वरिष्ठ अधिकारियों को पेश करने में पक्षकारों से ज्ञात करना चाहिए, कि क्या वे अंतिम आदेश पारित करने वाले अधिकारी द्वारा सुने जाने हेतु इच्छुक हैं या नहीं, या ऐसे अधिकारी द्वारा सुनवाई किये जाने के विषय में उनकी इच्छाएँ लेखबद्ध करेगा त्तथा प्रकरण में वरिष्ठ अधिकारी के न्यायालय में पक्षकारों की उपस्थिति की तिथि निश्चित करते हुए जाँच प्रकरण अग्रेषित करेगा।

(2) पीठासीन अधिकारी द्वारा किसी भी व्यक्ति के विरूद्ध अहितकारी कोई अंतिम आदेश उसे सुनवाई का मौका प्रदत्त किये बगैर एवं यदि वह ऐसी इच्छा करे, तो उसे सुने बिना पारित नहीं किया जाएगा।

(3) किसी पक्षकार के द्वारा प्रस्तुत त्वरित सुनवाई का आवेदन प्रस्तुत किये जाने पर पीठासीन अधिकारी आवेदन में उल्लिखित तथ्यों के आधार पर प्रकरण में अग्रिम सुनवाई कर सकेगा, किन्तु ऐसी सुनवाई एवं निर्धारित अग्रिम तिथि की सूचना सभी पक्षकारों को देना आवश्यक होगा।

(4) पीठासीन अधिकारी प्रतिदिन सुनवाई के उपरांत कार्यवाही विवरण को तत्काल ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली में दर्ज करेगा और यदि एक सप्ताह तक ऐसा नहीं किया जाता है तो वह कलेक्टर की अनुमति के पश्चात् ही ऐसा कर सकेगा।

(5) यदि अनावेदक सूचना की विधिवत तामीली के उपरांत भी अनुपस्थित रहता है तो उसके विरुद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की जा सकेगी, परंतु किसी अन्य तिथि पर जब पक्षकार को उस तिथि और स्थान की सूचना नहीं है, ऐसी कार्यवाही नहीं की जाएगी। पश्चातवर्ती तिथियों पर कार्यवाही के लिए उसको पुनः विधिवत सूचित करना अनिवार्य होगा।

(6) सूचना की तामीली के उपरांत यदि प्रकरण में अनावेदक या पक्षकार उपस्थित होते हैं तो उनको आवेदन एवं आवेदन के साथ संलग्न दस्तावेजों की प्रति अनावेदक को प्रदाय की जाएगी और प्रकरण में अनावेदक से जवाब की अपेक्षा की जाएगी।

20. प्रकरण में आपत्ति. उ‌द्घोषणा के प्रकाशन के उपरांत यदि किसी व्यक्ति के द्वारा आपत्ति की जाती है तो उससे लिखित आपत्ति प्राप्त की जाएगी और आपत्ति की प्रति सभी पक्षों को दिया जाकर आपत्ति पर उनका जवाब लिया जाएगा। जवाब प्राप्त होने के पश्चात आपत्ति पर तर्क का श्रवण किया जायेगा और आपत्ति पर विनिश्चय किया जायेगा। आवश्यकतानुसार आपत्तिकर्ता को पक्षकार के रूप में संयोजित किया जा सकेगा।

21. वाद बिन्दुओं का निर्धारण. प्रकरण में अनावेदक/अनावेदकों के द्वारा जवाब प्रस्तुत किये जाने के पश्चात् राजस्व न्यायालयों के द्वारा वाद बिन्दुओं का निर्धारण किया जायेगा। वाद बिंदु तथ्यों और विधि पर आधारित होंगे।

22. मूल दस्तावेजों का प्राप्त किया जाना. वाद बिंदुओं के निर्धारण के पश्चात मूल दस्तावेजों को पक्षकारों से प्राप्त किया जाएगा। यदि मूल दस्तावेज उपलब्ध नहीं हो तो उनकी प्रमाणित प्रतियाँ मान्य की जायेगी।

23. साक्ष्य ग्रहण करने की कार्यवाही (1) संहिता की धारा 33 के प्रावधान के अनुसार राजस्व न्यायालय किसी व्यक्ति को दस्तावेजी या मौखिक साक्ष्य प्रस्तुत करने हेतु समन जारी कर सकेगा। समन में व्यक्ति की उपस्थिति हेतु तिथि, समय व स्थान, विषयवस्तु का संक्षिप्त कथन एवं व्यक्ति से की जा रही अपेक्षा (मौखिक साक्ष्य या दस्तावेज) का स्पष्ट लेख होगा।

(2) इन नियमों में सूचना की तामीली के लिए उल्लिखित प्रक्रिया एवं माध्यम से समन की तामीली की जाएगी।

(3) राजस्व न्यायालय द्वारा समन किया गया व्यक्ति उससे की गई अपेक्षा की पूर्ति समयसीमा में करेगा।

(4) कार्यवाहियों में पक्षकारों / गवाहों के व्यक्तिशः कथन सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के आदेश 18 के नियम 4 के अधीन प्राप्त किया जायेगा। यदि आवश्यक हो तो लेखबद्ध कारणों से तथा एकपक्षीय साक्ष्य की दशा में न्यायालय स्वयं भी साक्ष्य ले सकेगा। किसी भी स्थिति में सामूहिक कथन मान्य नहीं किये जायेंगे।

Revenue Court:  24. साक्षियों की परीक्षा करने के लिए कमीशन.

(1) साक्षी की परीक्षा करने के लिए कमीशन जारी करने का आदेश राजस्व अधिकारी या जो स्वप्रेरणा से या कार्यवाहियों के किसी पक्षकार के या उस साक्षी के, जिसकी परीक्षा की जानी है, ऐस आवेदन पर, जो शपथपत्र द्वारा या अन्यथा समर्थित हो, किया जा सकेगा।

(2) कोई भी राजस्व अधिकारी-

(क) अपनी अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं से परे निवासी किसी भी व्यक्ति की;

(ख) किसी भी ऐसे व्यक्ति की, जो ऐसी सीमाओं को उस तारीख से पहले छोड़ने वाला है, जिसको कि न्यायालय में परीक्षा की जाने के लिए वह अपेक्षित है;

(ग) केन्द्र या राज्य सरकार की सेवा में के किसी ऐसे व्यक्ति की, जिसके कि बारे में ऐसे राजस्व अधिकारी की यह राय हो कि लोक सेवा का अपाय किए बिना हाजिर नहीं हो सकता,

(घ) किसी ऐसे व्यक्ति की, जिसे न्यायालय में हाजिर होने से छूट मिली हो या जो रूग्णता या अंगशैथिल्य के कारण न्यायालय में हाजिर होने में असमर्थ हो, परीक्षा करने के लिए कमीशन किन्हीं भी कार्यवाहियों में जारी कर सकेगा।

(3) किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन किसी भी ऐसे व्यक्ति को, जिसे कि न्यायालय उसका निष्पादन करने के लिए ठीक समझता है, या किसी ऐसे अन्य राजस्व अधिकारी को जो सुविधापूर्वक ऐसे व्यक्ति की परीक्षा कर सकता हो, जारी किया जा सकेगा।

(4) राजस्व अधिकारी, कोई भी कमीशन इस नियम के अधीन जारी करने पर यह निदेश देगा कि क्या कमीशन उसको ही लौटाया जाएगा या कि उसके किसी अधीनस्थ राजस्व अधिकारी को।

(5) राजस्व अधिकारी इन नियमों के अधीन कोई कमीशन जारी करने के पूर्व यह आदेश दे सकेगा कि ऐसी राशि (यदि कोई हो), जैसी कि वह कमीशन के व्ययों के लिए युक्तियुक्त समझे, नियम किए जाने वाले समय के भीतर उस पक्षकार द्वारा भुगतान की जाए जिसकी कि प्रेरणा पर या जिसके कि फायदे के लिए कमीशन जारी किया जाना है।

(6) जहाँ कि कमीशन इन नियमों के अधीन जारी किया जाता है, वहाँ राजस्व अधिकारी यह निदेश देगा कि कार्यवाहियों के पक्षकार कमिश्नर के सामने या तो स्वयं या अपने अभिकर्ताओं के या प्लीडरों के द्वारा उसंजात हो।

25. साक्षियों की परीक्षा करने के लिए जारी कमीशन की कार्यवाही.

(1) कमीश्नर कोई ऐसी आदेशिका जारी करने के लिए, जिसे वह साक्षी के नाम या विरूद्ध जारी करना आवश्यक पाए, ऐसे किसी राजस्व अधिकारी से, जिसकी कि अधिकारिता की स्थानीय सीमाओं के भीतर साक्षी निवास करता है, आवेदन कर सकेगा जैसी कि वह युक्तियुक्त तथा उचित समझे।

(2) साक्षियों को समन करने, साक्षियों की हाजिरी और साक्षियों के परीक्षा संबंधी और साक्षियों के पारिश्रमिक तथा उन पर अधिरोपित की जाने वाली शास्तियों संबंधी इस संहिता के उपबंध उन व्यक्तियों को लागू होंगे जिनसे साध्य देने की या दस्तावेज पेश करने की अपेक्षा इन नियमों के अधीन की गई है और कमीशन के बारे में इस नियम के प्रयोजनों के लिए यह समझा जाएगा कि वह राजस्व न्यायालय है।

(3) राजस्व अधिकारी की ऐसी अभिलिखित इजाजत के बिना किया गया कोई भी ऐसा करार या समझौता, अवयस्क से भिन्न समस्त पक्षकारों के विरूद्ध शून्यकरणीय होगा।

(4) प्रत्येक राजस्व अधिकारी, जिसे किसी व्यक्ति की परीक्षा करने के लिए कमीशन प्राप्त हो, उसके अनुसरण में उसकी परीक्षा करेगा या करवाएगा।

(5) जहाँ कमीशन का सम्यरूप से निष्पादन कर दिया गया हो, वहाँ वह उसके अधीन लिए गए साक्ष्य सहित उस राजस्व अधिकारी को जिराने कि उसे जारी किया था, उस दशा के सिवाय लौटा दिया जाएगा जिसमें कि कमीशन जारी करने वाले आदेश द्वारा अन्यथा निर्दिष्ट किया गया और उस दशा में कमीशन ऐसे आदेश के निबंधनों के अनुसार लौटाया जाएगा और कमीशन और उसके साथ वाली विवरणी और उसके अधीन लिया गया साक्ष्य (आगामी उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए) कार्यवाहियों के अभिलेख का भाग होंगे।

(6) कमीशन के अधीन लिया गया साक्ष्य कार्यवाही में साक्ष्य के तौर पर उस पक्षकार की सम्मति के बिना, जिसके विरूद्ध वह दिया गया है, उस दशा के सिवाय नहीं पढ़ा जाएगा, जिसमें कि-

(क) वह व्यक्ति जिसने साक्ष्य दिया है, न्यायालय की अधिकारिता के परे है, या मर गया है या रुग्णता या अंगशैथिल्य के कारण वैयक्तिक रूप से परीक्षा की जाने के लिए हाजिर होने में असमर्थ है या न्यायालय में स्वीय उपसंजाति से छूट पाया हुआ है, या केन्द्र या राज्य सरकार की सेवा में का ऐसा व्यक्ति है जिसके बारे में राजस्व अधिकारी की राय है कि वह लोक सेवा का अपाय किए बिना हाजिर नहीं हो सकता, या

(ख) राजस्व अधिकारी खण्ड (क) में वर्णित परिस्थितियों में से किसी के भी साबित किए जाने से अभिमुक्ति स्वविवेकानुसार दे देता है और किसी व्यक्ति के साक्ष्य को कार्यवाहियों में साक्ष्य के तौर पर पढ़ा जाना, इस सबूत के होते हुए भी कि कमीशन के माध्यम द्वारा ऐसा साक्ष्य लेने का हेतुक उसके पढ़े जाने के समय जाता रहा है, प्राधिकृत कर देता है।

26. समेकन. राजस्व न्यायालय एक ही पक्षकारों के मध्य एक ही वाद विषय पर लम्बित एक से अधिक प्रकरणों का संविलयन कर सकेगा।

Revenue Court:  27. अन्य व्ययों का निर्धारण.

(1) जब पीठासीन अधिकारी के समक्ष किसी भी कार्यवाही में पक्षकार द्वारा साक्षी की उपस्थिति के लिये आवेदन पत्र दिया गया हो, आवेदक द्वारा भोजन-व्यय, यात्रा-व्यय तथा कार्य व्यय वहन किया जायेगा। आवेदक पर इस हेतु लोक परिवहन सुविधा (रेल/बस) का भाड़ा, जो भी कम हो एवं जिस दूरी के लिये यह सुविधा न हो वहाँ 5 रूपये प्रति कि.मी. यात्रा-व्यय के रूप में, 100 रूपये प्रति व्यक्ति भोजन-व्यय के रूप में एवं तत्समय प्रचलित एक दिन की न्यूनतम मजदूरी कार्य व्यय के रूप में प्रभारित हो सकेगा। शासकीय सेवक शासन के मूलभूत नियमों में वर्णित प्रावधानों के तहत् यात्रा भत्ता लेने का स्वत्वाधिकारी होगा।

(2) संहिता के अधीन मामलों पर व्ययों के निर्धारण में विवेक का प्रयोग सतर्कता से किया जाना चाहिए। विवादित मामलों में यथा विवादित नामांतरणों तथा सीमा मामलों में व्ययों का निर्णयन युक्तिसंगत रीति से किया जाना चाहिये। व्ययों की अदायगी में मुख्तयारनामा या वकालतनामा के व्यय या आवेदनों को लिखाने का व्यय जैसे प्रभारों को कदाचित ही स्वीकार किया जाना चाहिए। व्यय की राशि को जितना संभव हो, उतना कम से कम रखने की सतर्कता होनी चाहिये।

(3) इसके सिवाय जब पक्षकार पर व्यय के आरोपण का संहिता या प्रवृत्त किसी भी अन्य अधिनियमिति के द्वारा प्रत्यक्षतः प्रावधान किया गया हो तो भी पीठासीन अधिकारी द्वारा उन प्रकरणों में, जिन्हें प्रशासकीय या शासन के हितों में स्वीकार किया गया है, व्ययों का निर्धारण या विनिश्चयन नहीं किया जायेगा।

Revenue Court:  . आदेश तिथि हेतु प्रक्रिया.-

(1) अंतिम रूप से वाद-विवाद सुनवाई किये जाने के उपरान्त आदेश घोषित करने के लिए एक यथासंभव निकटतम तिथि, जो अधिकतम 15 दिवस का होगा नियत किया जायेगा तथा पत्र पक्षकारों से उन्हें दिनांक की सूचना की पुष्टि नियम 19 के अनुसार प्राप्त किया जायेगा ।

(2) आदेश जहां तक संभव हो, नियत तिथि को ही पारित किया जाएगा एवं पारित आदेश की पृष्ठांकित प्रति सभी पक्षकारों को प्रदाय की जाएगी। ऐसी प्रति अपील एवं पुनर्विलोकन के प्रयोजनों के लिए प्रमाणित प्रति के रूप में मान्य होगी। यदि निर्धारित तिथि पर आदेश नहीं किया जा सके तो इसका कारण आदेश पत्र में लिखते हुए आदेश हेतु नवीन तिथि, जो अधिकतम 15 दिवस का होगा, नियत किया जाएगा, एवं इसकी सूचना पक्षकारों को प्रदत्त की जाएगी, किन्तु न्यायालय ऐसा दो से अधिक अवसरों पर नहीं करेगा।

(3) नियत तिथि के आदेश पत्र में, प्रत्येक पक्षकार को इस हेतु सूचना की प्राप्ति एवं उनकी उपस्थिति पर टीप लेखबद्ध की जाएगी।

Revenue Court: 29. प्रतिवेदन या आदेश का लेखन.

(1) पीठासीन अधिकारी द्वारा प्रकरण पर अंतरिम / अंतिम प्रतिवेदन या आदेश इस हेतु ई कोर्ट प्रबंधन प्रणाली पर निर्धारित आदेश पत्र में किया जायेगा। आदेश पत्र का उद्देश्य आरंभ से लेकर अंत तक प्रकरण में न्यायालय द्वारा किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के प्रक्रिया का समेकित वर्णन करना होता है। प्रकरण के प्रारंभ, उद्घोषणा, प्रत्येक सुनवाई पर आदेश, जारी सूचना-पत्र, समन, तामीली, जवाब, शपथपत्र, वाद बिन्दुओं का निर्धारण, दस्तावेजी एवं मौखिक साक्ष्य, लिखित एवं मौखिक तर्क, प्रकरण के दौरान प्राप्त विविध आवेदन एवं उनका निराकरण आदि के दिनांक एवं संक्षिप्त विवरण का उल्लेख आदेश पत्र में होगा। प्रकरण के वाद बिंदुओं पर विस्तृत विवेचना एवं लंबे आदेश पृथक से लिखे जा सकते हैं, परंतु उनका संक्षिप्त निष्कर्ष आदेश पत्र में अवश्य लिखा जाएगा।

(2) आदेश-पत्र के लेखन या टंकण के लिए संबंधित पीठासीन अधिकारी उत्तरदायी होगा। अंतिम आदेश/प्रतिवेदन का लेखन/टंकण पीठासीन अधिकारी द्वारा स्वयं या अपने निर्देशन में किया जायेगा। आदेश के प्रत्येक पृष्ठ पर उनके स्वयं के द्वारा हस्ताक्षरित किया जायेगा।

(3) प्रत्येक अंतिम प्रतिवेदन या आदेश में मामले का संक्षिप्त विवरण, मान्य तथ्य, अवधारण हेतु विवाद बिंदु, बिंदुओं पर विवेचना, प्रयुक्त अधिनियम, धाराओं और नियमों का क्रमांक एवं निष्कर्ष स्पष्ट उल्लिखित किया जाएगा।

(4) आदेश में हुए किसी लिपिकीय त्रुटी (लेखन, मुद्रण व टंकण त्रुटि) का परिमार्जन सम्बंधित पक्षकारों को सूचित कर एवं पृथक संशोधित आदेश कर किया जा सकेगा, लिपिकीय त्रुटि के अतिरिक्त अन्य सभी त्रुटियों को संहिता के प्रावधान के तहत ही सुधार किया जायेगा।

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Revenue Court:  30. आदेश पश्चात् कार्यवाही.-

(1) प्रकरण में प्रस्तुत किए गए मूल दस्तावेजों को संबंधित पीठासीन अधिकारी संबंधित पक्षकारों की उपस्थिति में सत्यापन कर मूल प्रति को उसकी प्रति संलग्न कर वापस कर सकेगा। प्रकरण में संलग्न मूल दस्तावेजों को पक्षकार अंतिम आदेश/प्रतिवेदन के 15 दिन के भीतर वापस ले सकेगा। ऐसी वापसी संबंधित टीप आदेश पत्र पर लिखे जाएंगे।

(2) राजस्व न्यायालय अपने प्रकरणों के अधीन भूमि के विषय में यह सुनिश्चित करेगा कि भूमि पर देय समस्त राजस्व का भुगतान किया गया है। भू-राजस्व या उपकर निर्धारण के प्रकरण या अन्य प्रकरण, जिसमें अर्थदंड अधिरोपित किया गया है, में वसूली हेतु वासिल बाकी-नवीस को ज्ञापन भेज कर प्रकरण अभिलेखागार भेजा जा सकेगा। आवश्यक होने पर वसूली के लिए पृथक प्रकरण दर्ज किया जा सकेगा।

(3) आदेश के पालन का उत्तरदायित्व आदेश देने वाले पीठासीन अधिकारी का होगा। आदेश की सूचना इस हेतु संबंधित पटवारी, वासिल बाकी-नवीस, कानूनगो, नायब नाजिर या अन्य अधिकारी/कर्मचारी को दी जाएगी, जिनके द्वारा पालन किये जाने के पश्चात् इस आशय की टीप आदेश पत्र में अंकित की जाएगी।

(4) यदि आदेश में अधीनस्थ अमले के द्वारा, अभिलेख दुरुस्ती अपेक्षित हो तो, राजस्व न्यायालय संबंधित पटवारी के द्वारा आदेश जारी होने के दिनांक से सात दिवस के भीतर अभिलेख दुरूस्ती किया जाना सुनिश्चित करेगा। यदि पटवारी सात दिवस में अभिलेख दुरुस्त नहीं करता है तो तहसीलदार स्वयं अभिलेख दुरुस्त कर सकेगा।

(5) आदेश का पालन सुनिश्चित करने के पश्चात् ही प्रकरण, राजस्व पुस्तक परिपत्र खंड 2 के क्रमांक 2 के निर्देशों के अनुसार नस्तीबद्ध कर, अभिलेख कक्ष भेजा जायेगा और तत्संबंधी प्रविष्टि ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली में भी की जाएगी।

(6) निराकृत हुए समस्त प्रकरण निराकरण के एक माह के भीतर अभिलेखागार में भेजने का दायित्व प्रस्तुतकार का होगा ।

(7) अभिलेख कक्ष के प्रभारी द्वारा भेजे गए प्रकरणों के संबंध में पावती अभिलेख कक्ष प्रभारी द्वारा संबंधित न्यायालय को तत्काल लौटाई जाएगी।

31. समय सीमा. संहिता के प्रावधानों में जब तक अन्य कोई समय सीमा प्रावधानित नहीं किया गया हो,-

(1) सभी अविवादित राजस्व प्रकरण में पंजीयन की तारीख से 03 महीने की अवधि के भीतर अंतिम आदेश पारित किया जायेगा।

(2) सभी विवादित राजस्व प्रकरण तथा अपील, पुनरीक्षण एवं पुनर्विलोकन प्रकरण में पंजीयन की तारीख से 06 महीने की अवधि के भीतर अंतिम आदेश पारित किया जायेगा।

(3) विलंब की स्थिति में इसके कारणों को आदेश पत्र में लेखबद्ध किया जायेगा।

(4) प्रत्येक राजस्व वर्ष में प्रचलित राजस्व प्रकरणों के दर्ज होने, निराकृत होने एवं लंबित होने की संख्यात्मक जानकारी संबंधित ई-कोर्ट प्रबंधन प्रणाली पर संधारित होगी। समयसीमा से बाहर लंबित प्रकरणों के विलम्ब के विषय में संबंधित पीठासीन अधिकारी जिम्मेदार होगा।

32. सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 का लागू होना. जब तक संहिता या इन नियमों में अन्यथा उपबंधित न हो, संहिता की धारा 43 के अनुसार सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के प्रावधान लागू होंगे।

Revenue Court:  33. समीक्षा.-

(1) संभागीय आयुक्त को प्रतिवर्ष न्यूनतम दो अधीनस्थ जिला न्यायालय का, न्यूनतम चार अधीनस्थ अनुविभागीय अधिकारी (राजस्व) न्यायालय का एवं न्यूनतम आठ अधीनस्थ तहसीलदार न्यायालय का विस्तृत निरीक्षण करना आवश्यक होगा।

(2) कलेक्टर द्वारा समयसीमा बैठकों में जिला अंतर्गत सभी राजस्व न्यायालयों के राजस्व प्रकरणों, विशेषतः शासन के हित निहित होने वाले शीर्ष एवं राजस्व अभिलेख अद्यतन करने वाले वाले शीर्ष के प्रकरणों के निराकरण की समीक्षा की जाएगी।

Revenue Court: 34. निरसन एवं व्यावृत्ति.-

इन नियमों के प्रवृत्त होने के दिनांक से राजस्व पुस्तक परिपत्र के खंड 2 के क्रमांक 1 की कंडिका 1 से 12 एवं कंडिका 23 से 34, खंड 2 कमांक 10, खंड 2 क्रमांक 14 तथा संहिता की अनुसूची 1 के नियम 1 से 18 एवं नियम 54 से 68 निरस्त माने जायेंगेः परंतु इस प्रकार निरस्त निर्देशों/ नियमों के अधीन किया गया कोई भी आदेश या की गई कोई भी कार्यवाही इन निर्देशों/ नियमों के तत्स्थानी उपबंधों के अधीन किया आदेश या की गई कार्यवाही समझी जाएगी

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