November 22, 2024

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अध्यरयन रिपोर्ट: कोरोना के बाद बच्‍चों की सीखने की क्षमता पर कितना पड़ा है असर…

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रायपुर। chaturpost.com (चतुरपोस्‍ट.कॉम)

अन्य क्षेत्रों की तरह, कोविड-19 महामारी और उसके बाद के लॉकडाउन ने छत्तीसगढ़ में स्कूली बच्चों की सीखने की क्षमता एवं प्रक्रिया को बुरी तरह प्रभावित किया है, इसलिए राज्य सरकार को प्राथमिकता के आधार पर सरकारी स्कूलों में बच्चों के सीखने के अंतराल को पाटने के लिए प्रयास और पहल करने की जरूरत है। गैर-लाभकारी संस्था आत्मशक्ति ट्रस्ट, दलित आदिवासी मंच एवं जन जागरण समिति, छत्तीसगढ़ के द्वारा आज जारी एक हालिया और संयुक्त तथ्य-खोज अध्ययन रिपोर्ट में ये खुलासा हुआ है। .

अध्‍ययन रिपोर्ट पर हुई चर्चा

राज्य अनुसूचित जाति आयोग के सदस्य राम पप्पू बघेल, राज्य आरटीई फोरम के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय, छत्तीसगढ़ राज्य पिछड़ा वर्ग के प्रतिनिधि, विभीषण पात्रे – सचिव, जन जागरण समिति देवेंद्र बघेल – संयोजक दलित आदिवासी मंच, आत्मशक्ति ट्रस्ट के वरिष्ठ प्रबंधक संतोष कुमार, मनोज सामंतरे और कई अन्य गणमान्य लोगों ने रिपोर्ट के विमोचन में भाग लिया और राज्य में बच्चों के बीच सीखने के परिणामों में सुधार के लिए कार्य एवं रणनीतियों पर चर्चा की।

तीन जिलों के 323 गांवों में किया गया अध्‍ययन

यह रिपोर्ट छत्तीसगढ़ के महासमुंद, बलौदाबाजार और जांजगीर चांपा जिले के 323 गांवों के किये गए ऑनलाइन अध्ययन पर आधारित है। इस अध्ययन का मुख्य उद्देश्य है की महामारी के दौरान स्कूल बंद होने के कारण बच्चों को जो सीखने की हानि हुई है उसके रिकवरी के लिए राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयासों का धरातल पर क्या असर है। इसको पाता लगाया जा सके और राज्य सरकार को इसके बारे में अवगत कराया जा सके ताकि शिक्षा की वर्तमान स्थिति के अंतर को पाटने के लिए एक सहयोगी प्रयास किया जा सके।

अध्ययन में लर्निंग रिकवरी प्रोग्राम पर 651 उत्तरदाताओं, शिक्षा के अधिकार के मानदंडों पर 367 उत्तरदाताओं, ड्रॉप आउट पर 101 उत्तरदाताओं और प्रवासन ( माइग्रेशन ) पर 96 उत्तरदाताओं से डेटा एकत्र किया गया है ।

 

अध्ययन रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष

 

  • 1% छात्रों ने कहा कि उन्हें अपने वर्तमान पाठ्यक्रम में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वे इसे अपने पिछले वर्ष के पाठ्यक्रम से जोड़ने में सक्षम नहीं हैं
  • रिपोर्ट से पता चला कि छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा लर्निग रिकवरी के लिए धरातल पर कोई ठोस पहल नहीं किये जा रहे है जिस कारण ये बच्चों को शिक्षा की परिधि में रहने के लिए ही मजबूर करेगा एवं छात्रों के लिए कोविड-19 महामारी के दौरान सीखने का जो नुकसान हुआ है उससे उबरना कठिन होगा।
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  • तथ्य-खोज रिपोर्ट से पता चला कि 52% (101) स्कूलों में स्वीकृत पदों की संख्या की तुलना में 1 शिक्षक की कमी है। पर्याप्त स्कूल शिक्षकों की कमी छत्तीसगढ़ में शिक्षा को बहुत प्रभावित करती है। इसी तरह, 25.88% (95), 19.07% (70), और 7.90% (29) स्कूलों में क्रमशः 2,3 और 4 शिक्षकों की कमी है।
  • फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 71% (54) स्कूलों में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग शौचालय नहीं हैं, लगभग सभी कार्यालयों और संस्थानों में, हम पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग शौचालय पा सकते हैं, फिर स्कूलों में ऐसा क्यों नहीं है ? आरटीई के लागू होने के 13 साल बाद भी यह स्थिति है जबकि यह छात्रों की प्राथमिक आवश्यकता है |
  • फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट ने इस तथ्य की भी पड़ताल की कि स्कूलों में 52% (90) शौचालयों में पानी की सुविधा नहीं है। माता-पिता द्वारा दिए गए बयान के अनुसार, पानी की उचित सुविधा के बिना शौचालय का कोई उपयोग नहीं है।
  • फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से पता चलता है कि 26% (45) स्कूलों में खेल के मैदान नहीं हैं। खेल का मैदान छात्रों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। खेल के मैदानों की कमी के बारे में एसएमसी सदस्य और माता-पिता गंभीर रूप से चिंतित हैं।
  • तथ्य-खोज रिपोर्ट से पता चला है कि 101 ड्रॉपआउट मामलों में से 67% एसटी के हैं, जबकि 26.73%, 38.61% और 1.98% क्रमशः एससी, ओबीसी और सामान्य श्रेणियों से हैं। तथ्य-खोज से पता चला की ड्रॉपआउट के महत्वपूर्ण कारण घरेलु कार्य है जिसमे 32.67% बच्चे लगे हुए हैं । , और 36.63% ने अपने ड्रॉपआउट कारणों को पाठ्यक्रम में कठिनाइयों के कारण बताया है, 7.92% ने बताया की माता-पिता रुचि नहीं रखते हैं,7.92%, 14.85%, श्रम कार्य में लगे हुए हैं, और या तो माता-पिता पलायन कर चुके हैं या पढ़ाने में रुचि नहीं रखते हैं।
  • तथ्य-खोज से पता चला कि 22% छात्रों के पास पढ़ने का कोई अवसर नहीं था, न ही उनके लिए COVID-19 महामारी के दौरान विभिन्न मुद्दों के कारण पढ़ने की गतिविधियों में शामिल होने की कोई गुंजाइश थी।
  • प्रवासी छात्रों की वर्तमान व्यस्तता -29% ने कहा है कि वे अपने माता-पिता को घरेलू काम में मदद कर रहे हैं।
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