CG Safarnama: रायपुर। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के तुरंत बाद छत्तीसगढ़ की राजनीति कई ऐसी घटनाएं हुई, जिसने राज्य की छवि को दागदार किया। इनमें एक हत्याकांड भी शामिल है। इस हत्याकांड में तत्कालीन शासन और प्रशासन दोनों पर आरोप लगे। इस मामले में न केवल तत्कालीन मुख्यमंत्री के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुआ बल्कि उनकी गिरफ्तारी भी हुई।
छत्तीसगढ़ की पहली राजनीतिक हत्याकांड कहा जाने वाला यह मामला जग्गी हत्याकांड के नाम से चर्चित है। इसकी पहले राज्य पुलिस फिर सीबीआई ने जांच की। इस मामले में 30 से ज्यादा लोगों को सजा हो चुकी है। इनमें पेशेवर अपराधियों के साथ राजनीति से जुड़े लोग और नौकरशाह शामिल हैं।
जग्गी को पूरा नाम रामावतार जग्गी था। जग्गी प्रदेश के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल से करीबी नेता थे। 4 जून 2003 की रात को मौदहापारा थाना से चंद कदम की दूरी पर उनकी गोलीमार कर हत्या कर दी गई थी। पुलिस ने इस हत्या को लूट की वारदात बताने का प्रयास किया था।
मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज विद्याचरण शुक्ल ने कांग्रेस छोड़ दिया और शरद पवार की एनसीपी में शामिल हो गए। वीसी के साथ हजारों की संख्या में कांग्रेसी भी एनसीपी में शामिल हो गए। विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वीसी के इस कदम से तत्कालीन कांग्रेस सरकार को ,खतरा महसूस होने लगा। वीसी लगातार सक्रिय थे और उनके समर्थक भी जोश में थे। वीसी ने अपने सबसे भरोसेमंद जग्गी को एनसीसी छत्तीसगढ़ का कोषाध्यक्ष बनाया दिया था।
एनसीसी छत्तीसगढ़ में बड़ी रैली की तैयारी में थी, इसमें राष्ट्रीय नेताओं को भी शामिल होना था। इसकी तैयारी में पार्टी ने पूरी ताकत लगा दी थी। इमसें प्रदेशभर से कार्यकर्ता और जनता शामिल होने वाली थी।
4 जून 2003 को जग्गी अपनी कार से मौदहापारा थाना के सामने वाली रोड से एमपी रोड से केके रोड की तरफ आ रहे थे। जैसे ही वे एमपी रोड पर पहुंचे उनकी कार को कुछ लोगों ने रोका और दनादन गोलियां बरसा कर फरार हो गए। गोली की आवाज सुनकर वहां भीड़ जमा हो गई। थाने में मौजूद निरीक्षक वीके पांडेय भी मौके पर पहुंच गए। गंभीर रुप से घायल जग्गी अस्पताल की बजाय पहले थाना ले जाया गया फिर अंबेडकर अस्पताल पहुंचा गया, जहां उनकी मौत हो गई।
जग्गी गोली मारने की खबर सुनते ही वीसी और उनके समर्थक थाने पहुंच गए। थोड़ी ही देर में वहां सैकड़ों की भीड़ एकत्र हो गई। इससे पहले ही निरीक्षक वीके पांडेय ने अपनी तरफ से एफआईआर दर्ज कर ली, जिसमें घटना के पीछे लूट की आशंका जाहिर की थी। इससे वहां पहुंचे वीसी और एनसीपी के कार्यकर्ता भड़क गए।
वीसी और उनके समर्थकों के दबाव में पुलिस को दूसरा एफआईआर दर्ज करना पड़ा। जग्गी के पुत्र सतीश जग्गी की तरफ से दर्ज इस एफआईआर में तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके पुत्र अमित जोगी को नामजद किया गया है। पुलिस ने दबाव में सीएम और उनके पुत्र के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज कर लिया, लेकिन जांच अपनी लूट वाली एफआईआर के आधार पर की।
पुलिस ने लूट के लिए हत्या की अपनी थ्योरी को साबित करने के लिए पांच लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया। अविनाश सिंह उर्फ लल्लन, श्याम सुंदर, विनोद सिंह, जामवंत कश्यप और विश्वनाथ राजभर शामिल थे। सभी आरोपियों को छत्तीसगढ़ के बाहर से पकड़ कर लाया गया था।
इस घटना के छह महीने में प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया। नवंबर 2003 में हुए राज्य के पहले विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार सत्ता से बाहर हो गई। भाजपा को बहुमत मिला और डॉ. रमन सिंह प्रदेश के नए मुख्यमंत्री बने। भाजपा ने सत्ता में आते ही जग्गी हत्याकांड की जांच सीबीआई को सौंप दी।
इस मामले की जांच लंबी चली। इस बीच 2007 में कोर्ट ने मामले में नामजद पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया। जोगी को जिस दिन गिरफ्तार किया गया वे कवर्धा जिला के वीरेंद्र नगर में थे, पुलिस ने उन्हें वहीं से गिरफ्तार किया। जेल दाखिल करने से पहले जोगी की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। इसके साथ ही उनकी जमानत के प्रयास होने लगे। अस्पताल में रहते हुए ही उन्हीं जमानत मिल गई।
सीबीआई ने सतीश जग्गी की तरफ से मौदहापारा थाने में दर्ज कराई गई एफआईआर के आधार पर जांच शुरू की। केंद्रीय जांच एजेंसी ने लंबी जांच के बाद रायपुर की विशेष अदालत में चार्जशीट दाखिल किया। इसमें 31 लोगों के नाम थे। इनमें अमित जोगी को मुख्य आरोपी बताया गया था। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में उन पांच लोगों को भी आरोपी बनाया जिन्हें पुलिस ने पहले गिरफ्तार किया था।
रायपुर की सीबीआई की विशेष कोर्ट ने 31 मई 2007 को अपना फैसला सुनाया। इसमें अमित जोगी को दोष मुक्त करार देते हुए बरी कर दिया गया। कुछ अन्य आरोपी भी बारी हो गए, लेकिन तीन पुलिस वालों के साथ ही 19 आरोपियों को सजा सुनवाई गई। पुलिस वालों को पांच-पांच साल की सजा हुई, कुछ आरोपियों को नौ- नौ साल की और बाकी को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई।
इस मामले में दोषी करार दिए गए याहया ढेबर और अभय गोयल के भाई अनवर ढेबर और अंशुल गोयल ने 2008 में प्रेस कांफ्रेंस लेकर सीबीआई के विशेष जज अजय तिड़के पर 25 लाख रुपये की रिश्वत लेकर अमित जोगी को बरी करने का आरोप लगाया। जज तिड़के ने इसे कोर्ट की अवमानना बताते हुए में याचिका दाखिल की थी।
विशेष कोर्ट से मिली सजा के खिलाफ कुछ आरोपियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। हाईकोर्ट में करीब 17 साल तक मामला चला। लंबी बहस के बाद हाईकोर्ट ने सभी आरोपियों की सजा बरकरार रखी।
अमित जोगी को मामले में बरी किए जाने के खिलाफ सतीश जग्गी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर रखी है। फिलहाल इस मामले की सुनवाई पेडिंग है।