CG Safarnama: मुख्‍यमंत्रियों का संयोग: विधानसभा के सदस्‍य नहीं थे छत्‍तीसगढ़ के पहले दोनों सीएम..

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CG Safarnama: मुख्‍यमंत्रियों का संयोग: विधानसभा के सदस्‍य नहीं थे छत्‍तीसगढ़ के पहले दोनों सीएम.. 1 min read

CG Safarnama:  रायपुर। छत्‍तीसगढ़ की मौजूदा विष्‍णुदेव साय सरकार प्रदेश की 6वीं सरकार है। विष्‍णुदेव मुख्‍यमंत्री बनने वाले चौथे नेता हैं। छत्‍तीसगढ़ राज्‍य स्‍थापना के बाद बने पहले और दूसरे मुख्‍यमंत्री जब सीएम बने तब वे विधानसभा के सदस्‍य नहीं थे। दोनों मुख्‍यमंत्री उपचुनावों के जरिये विधानसभा के सदस्‍य बने। अजीत जोगी छत्‍तीसगढ़ के पहले और डॉ. रमन सिंह दूसरे मुख्‍यमंत्री थे।

CG Safarnama:  उप चुनावों के जरिये विधानसभा के सदस्‍य बने दोनों मुख्‍यमंत्री

छत्‍तीसगढ़ के पहले और दूसरे मुख्‍यमंत्री पहले सीएम पद की शपथ ली बाद में उन्‍होंने विधानसभा की सदस्‍यता ग्रहण की। नियमानुसार कोई भी व्‍यक्ति मुख्‍यमंत्री या मंत्री बन सकता है, लेकिन पद ग्रहण करने के छह महीने के भीतर उसे विधानसभा की सदस्‍यता ग्रहण करनी पड़ती है। यानी छह महीने के भीतर उसे चुनाव जीतकर सदन में पहुंचना पड़ता है।

छत्‍तीसगढ़ के पहले मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी ने 1 नवंबर 2000 को मुख्‍ययमंत्री के पद का शपथ लिया था, लेकिन 2001 में वे छत्‍तीसगढ़ विधानसभा के विधिवत सदस्‍य बने थे। विधानसभा का सदस्‍य बनने के लिए  जोगी ने मरवाही सीट को चुना था। इस सीट से 1998 में भाजपा के रामदयाल उईके विधायक चुने गए थे। उईके ने जोगी के लिए अपनी सीट छोड़ दी।

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उईके के इस्‍तीफा देने की वजह से खाली हुई एसटी आरक्षित मरवाही सीट पर 2001 में उपचुनाव हुआ। मुख्‍यमंत्री जोगी ने इस सीट से कांग्रेस की टिकट पर पर्चा दाखिल किया। भाजपा की तरफ से अमर सिंह खुसरो ने चुनाव लड़ा, ले‍किन मुकाबला पूरी तरह एकतरफा रहा। इस उप चुनाव में अजीत जोगी को 71 हजार 211 वोट मिले, जबकि भाजपा के खुसरो केवल 20 हजार 453 वोट ही हासिल कर पाए।

इस तरह अजीत जोगी मरवाही सीट से उप चुनाव जीतकर छत्‍तीसगढ़ विधानसभा के विधिवत सदस्‍य बन गए। 2003 का विधानसभा चुनाव भी जोगी ने इसी सीट से लड़ा और वह चुनाव भी जोगी जीत गए थे। 2004 में महासमुंद से लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद उन्‍होंने विधानसभा छोड़ दिया था।

CG Safarnama:  जानिए.. मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिए किसने दिया था विधानसभा से इस्‍तीफा

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य निर्माण के बाद 2003 में पहली बार विधानसभा का चुनाव हुआ। इस चुनाव में ने भाजपा के पक्ष में फैसला सुनाया। भाजपा विधायक दल की बैठक में डॉ. रमन सिंह को विधायक दल का नेता यानी मुख्‍यमंत्री चुना गया, लेकिन तब डॉ. रमन सिंह विधायक नहीं थे, क्‍योंकि 2003 का चुनाव उन्‍होंने लड़ा ही नहीं था।

2003 में डॉ. रमन सिंह ने जब मुख्‍यमंत्री पद की शपथ ली, वे भाजपा के प्रदेश अध्‍यक्ष थे। विधानसभा चुनाव में पार्टी की शानदार जीत का श्रेय पार्टी ने डॉ. रमन सिंह को देते हुए उन्‍हें ईनाम के रुप में मुख्‍यमंत्री का पद सौंप दिया। सीएम बनने के बाद डॉ. रमन सिंह को विधायक बनना था, ऐसे में राजनांदगांव जिला की डोंगरगांव सीट खाली कराई गई।   

डोंगरगांव सीट से 2003 में भाजपा के प्रदीप गांधी चुनाव जीते थे। गांधी ने कांग्रेस सरकार की तत्‍कालीन मंत्री गीतादेवी सिंह को हराया था। प्रदीप गांधी के इस्‍तीफा देने के कारणा खाली हुई इस सीट पर 2004 में उप चुनाव कराया गया। भाजपा की टिकट पर तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने पर्चा दाखिल किया तो कांग्रेस ने फिर गीतादेवी सिंह को उनके सामने खड़ा कर दिया। करीब 10 हजार वोट के अंतर से डॉ. रमन सिंह चुनावी जीते और विधानसभा के सदस्‍य बनें।

डॉ. रमन सिंह ने 2008 में डोंगरगांव सीट छोड़ दिया और राजनांगदगांव विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने लगे। तब वे डॉ. रमन सिंह लगातार राजनांदगांव से ही चुनाव लड़ रहे हैं।      

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