DISCOM न्यूज डेस्क। घाटे में चल रही उत्तर प्रदेश की पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) के निजीकरण की तैयारी का उत्तर प्रदेश में जोरदार विरोध हो रहा है। बिजली वितरण व्यवस्था के निजी करण का विरोध कर रहे यूपीपीसीएल के कर्मचारी और इंजीनियरों को देशभर के पॉवर कंपनियों का साथ मिल रहा है।
पंजाब और हरियाणा के बाद अब झारखंड के बिजली इंजीनियर भी यूपी के बिजली कर्मचारियों के समर्थन में आ गए हैं। झारखंड पावर इंजीनियरिंग सर्विस एसोसिएशन (JAISA)ने आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को आज एक पत्र लिखा है।
एसोसिएशन के महासचिव प्रीतम निशि कोरी की तरफ से यूपी के सीएम को लिखे गए पत्र में उन्होंने कहा कि हम वाराणसी और आगरा विद्युत वितरण कंपनियों (DISCOM) के प्रस्तावित निजीकरण से प्रभावित होने वाले कर्मचारियों, संघों, हितधारकों और समुदायों के प्रति अपनी अटूट एकजुटता और समर्थन व्यक्त करने के लिए लिख रहे हैं। JPESA के संबंधित प्रतिनिधियों के रूप में, हमारा मानना है कि इस निर्णय के सार्वजनिक हित, कर्मचारियों के कल्याण और बिजली तक समान पहुंच पर दूरगामी परिणाम हो सकते हैं।
DISCOM बिजली केवल एक वस्तु नहीं है; यह एक मूलभूत आवश्यकता है जो विकास को गति देती है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती है। कई मामलों में, निजीकरण के कारण टैरिफ़ बढ़ गए हैं, जवाबदेही कम हो गई है और सेवा की गुणवत्ता कम हो गई है, खासकर बिजली वितरण जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में।
निजीकरण की ओर यह बदलाव सार्वजनिक कल्याण पर लाभ को प्राथमिकता देने का जोखिम पैदा करता है, जिससे आर्थिक रूप से वंचित समूहों के लिए बिजली तक पहुँच में असमानताएँ पैदा होती हैं।
हम इन DISCOM के कर्मचारियों के साथ खड़े हैं, जिन्होंने नौकरी की सुरक्षा, उचित मुआवज़ा और सार्वजनिक क्षेत्र के सिद्धांतों के क्षरण पर चिंता व्यक्त की है। इन कर्मचारियों ने कई चुनौतियों के बावजूद कुशल और विश्वसनीय बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी चिंताओं को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ संबोधित किया जाना चाहिए।
DISCOM इन कारकों को ध्यान में रखते हुए, हम प्राधिकारियों से आग्रह करते हैं कि:
1. निर्णय पर पुनर्विचार करें: निजीकरण प्रस्ताव की पारदर्शी और समावेशी समीक्षा करें, जिसमें कर्मचारियों, यूनियनों और उपभोक्ता वकालत समूहों सहित सभी हितधारकों को शामिल किया जाए।
2. सार्वजनिक क्षेत्र के परिचालन को मजबूत करना: निजीकरण का सहारा लिए बिना दक्षता में सुधार और घाटे को कम करने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के भीतर बुनियादी ढांचे के उन्नयन और सुधारों को लागू करने में निवेश करना।
3. कर्मचारी अधिकारों की रक्षा: सुनिश्चित करें कि डिस्कॉम कर्मचारियों के अधिकार और कल्याण सुरक्षित रहें, नौकरी की सुरक्षा और उचित कार्य स्थितियों के लिए स्पष्ट प्रावधान हों।
4. लोक कल्याण को प्राथमिकता दें: ऐसी रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित करें जो टैरिफ बढ़ाए बिना सभी के लिए, विशेष रूप से हाशिए पर और ग्रामीण आबादी के लिए बिजली तक समान पहुंच को बढ़ाएं।
5. हमारा दृढ़ विश्वास है कि सार्वजनिक सेवा के मूल्यों से समझौता किए बिना सतत और समावेशी विकास हासिल किया जा सकता है। हम वाराणसी और आगरा डिस्कॉम पर सार्वजनिक नियंत्रण बनाए रखने की वकालत करने वाले सभी हितधारकों के साथ एकजुट हैं।
6. आइए हम सब मिलकर यह सुनिश्चित करें कि कर्मचारियों और अन्य हितधारकों के हित इस महत्वपूर्ण निर्णय में सर्वोपरि रहें।
DISCOM जानिए.. एक लाख 10 हजार करोड़ का घाटा
उत्तर प्रदेश की बिजली कंपनी एक लाख 10 हजार करोड़ रुपये के घाटा में चल रही है। बताया जा रहा है कि कंपनी का घाटा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। वर्ष 2000 में यह कंपनी का घाटा केवल 77 करोड़ रुपये था। उत्तर प्रदेश में बिजली वितरण का काम अलग-अलग सरकारी कंपनियां करती हैं।
इसमें दक्षिणांचल बिजली वितरण कंपनी का घाटा 24 हजार 947 करोड़, पूर्वांचल बिजली वितरण कंपनी का बकाया 40 हजार 962 करोड़ और मध्यांचल का बकाया 30 हजार 031 करोड़ है। इसी तरह पश्चिमांचल बिजली वितरण कंपनी का बकाया 16 हजार 017 करोड़ और केस्को का बाकाया तीन हजार 866 करोड़ रुपये है। लेकिन इसकी वसूली नहीं हो पा रही है।
सरकार वसूली की बजाया पावर कंपनियों का पीपीपी मॉडल पर निजीकरण करने की तैयारी में है। निजीकरण के खिलाफ संघर्ष कर रहे पावर कंपनी के कर्मचारियों का नेतृत्व कर रहे अवधेश वर्मा कहना है कि बकाया वसूली हो जाए तो पावर कंपनियां मुनाफा में आ जाएंगी।