Power company रायपुर। छत्तीसगढ़ की सरकारी बिजली कंपनी का मुख्यालय डंगनिया से नवा रायपुर जाएगा। इसके लिए नवा रायपुर में कंपनी का नया मुख्यालय बनेगा। कंपनी प्रबंधन की तरफ से इसके लिए टेंडर जारी किया जा चुका है। यह टेंडर पिछले साल दिंसबर में जारी किया गया था। इस बीच कंपनी के कर्मचारियों के साथ ही सेवानिवृत्त कर्मचारी भी कंपनी मुख्यालय शिफ्टिंग का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि नया मुख्यालय बनाने में बड़ी राशि खर्च होगी जिसका बोझ जनता पर पड़ेगा।
नवा रायपुर के सेक्टर 24 में प्लाट नंबर ए-47 पर प्रस्तावित बिजली मुख्याल के नए मुख्यालय भवन की लागत टेंडर में 182 करोड़ रुपये बताई गई है। टेंडर की शर्तें के अनुसार टेंडर हासिल करने वाले ठेकेदार को 30 महीने में काम पूरा करना होगा।
पावर कंपनी प्रबंधन की तरफ से 9 दिसंबर 2024 को टेंडर की सूचना जारी की गई थी। इसमें बताया गया कि 20 दिसंबर 2024 से टेंडर डाउनलोड किया जा सकता है। इससे पहले 17 दिसंबर 2024 को कंपनी ने इसमें संशोधन कर दिया। टेंडर डाउन लोड कराने की तारीख बढ़ाकर 7 जनवरी 2025 कर दी गई। इसमें टेंडर जमा करने की अंतिम तारीख 31 जनवरी 2025 तय की गई थी, जबकि टेंडर ओपन करने की तारीख 3 फरवरी 2025 तय की गई थी। टेंडर की फिर नई तारीख जारी की गई है। अब टेंडर 25 फरवरी तक जमा किया जा सकता है। 27 फरवरी को टेंडर खुलेगा।
Power company रिटायर्ड पावर इंजीनियर्स-आफिसर्स एसोसिएशन ने फिर लिखा पत्र
पावर कंपनी मुख्यालय नवा रायपुर में बनाए जाने का विरोध किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ रिटायर्ड पावर इंजीनियर्स-आफिसर्स एसोसिएशन ने नवा रायपुर में मुख्यालय बनाए जाने पर सवाल खड़ा किया है। इस संबंध में एसोसिएशन की तरफ से मुख्यमंत्री के साथ ही कंपनी प्रबंधन को भी पत्र लिखा जा चुका है। एसोसिएशन ने पत्र में तथ्यों के साथ अपनी बात मुख्यमंत्री के सामने रखी है।
एसोसिएशन की तरफ से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि वर्तमान मुख्यालय परिसर बिजली कंपनियों के स्वयं के आधिपत्य में है एवं यह पूरी तरह से पर्याप्त है। पिछले कुछ वर्षों में परिसर में कुछ कार्यालय भवन बनाये गये हैं। हाल ही में लगभग 2 करोड़ की लागत से उत्पादन कंपनी के तीन कार्यालय भवनों का उद्घाटन हुआ है एवं ई.आई.टी.सी. के एक भवन का रुपांतरण भी हुआ हैं। अगर कार्यालयों हेतु और भी स्थान की आवश्यकता है तो अभी भी परिसर में कुछ अत्यंत पुराने अनुपयोगी भवन हैं जिनके स्थान पर नया बहुमंजिला कार्यालय भवन निर्माण किया जा सकता है।
एसोसिएशन के अनुसार जो काम मौजूदा परिसर में अधिकतम मात्र 05 करोड़ रुपये में आसानी से संभव है उसके लिए नवा रायपुर में लगभग 500 करोड़ रुपये खर्च कर के उपभोक्ताओं पर बोझ डालना न केवल अनावश्यक है बल्कि गैर जिम्मेदाराना भी है। इस संबंध में यह महत्वपूर्ण है कि वर्तमान में उत्पादन कंपनी और पारेषण कंपनी के लाभ को समायोजित करने के बाद भी राज्य बिजली वितरण कंपनी 4500 करोड़ से अधिक के घाटे में है। जिसकी प्रतिपूर्ति आगामी टैरिफ से प्रस्तावित है। यही नहीं राज्य शासन भी धन संकट से गुजर रही है, जिसके कारण बिजली कंपनियों को देय सब्सिडी का भुगतान भी नियमानुसार नहीं हो पाया है। ऐसे में न तो नये भवन का खर्च टैरिफ पर आरोपित करना उचित होगा न ही इस के लिए शासन के द्वारा टैक्स पेयर्स के पैसे से कैपिटल सब्सिडी दिया जाना उचित होगा।
मुख्यालय स्थानांतरण से असुविधा वर्तमान मुख्यालय परिसर तक पहुंचना कार्मिकों / सेवा प्रदाताओं / उपभोक्ताओं / सेवानिवृत्त कार्मिकों सभी के लिए सुविधाजनक है जबकि प्रस्तावित स्थानांतरण से सभी की कठिनाई बढ़ जाएगी। महत्वपूर्ण यह भी है कि प्रतिदिन विभागीय कार्यों से विभिन्न संयंत्रों और जिलों से दर्जनों कर्मचारी मुख्यालय आते हैं। नवा रायपुर में मुख्यालय स्थानांतरित किए जाने के बाद उनके आने जाने के लिए अलग से व्यवस्था करनी होगी जिसमें समय और साधन दोनों व्यर्थ होंगें।
भविष्य की कोई योजना नहीं- वर्तमान परिसर की आज की तारीख में 100 करोड़ से अधिक होगी, परंतु आश्चर्य कि जो अधिकारी नवा रायपुर में नए भवन का टेंडर जारी किए हैं उन्हें खुद नहीं पता कि नया भवन बनने के बाद मौजूदा परिसर का क्या किया जाएगा। बाये हाथ को पता नहीं कि दाया हाथ क्या कर रहा हैं। यह भी जो ऊत्पादन कंपनी अपने कार्यालयों की रंगाई-पोताई के लिए भी पारेषण कंपनी पर निर्भर हैं, वह नए मुख्यालय भवन के निर्माण की जवाबदारी ली हुई है, वो भी तब जबकि यह कंपनी अपने नए उत्पादन गृहों के निर्माण के लिए कुछ नहीं कर पा रही है। वहीं दूसरी ओर जिस पारेषण कंपनी को मुख्यालय भवन प्रणाली का अनुभव है वह इस पूरी प्रक्रिया से अलग-थलग है। इस सब से चारों तरफ बहुत तरह की चर्चाएं गर्म हैं।
Power company मुख्यालय स्थानांतरण बिजली अधिनियम की भावना के विपरीत बिजली अधिनियम 2003 मूलतः बिजली क्षेत्र को शासन के प्रभाव से परे एवं स्वतंत्र नियामक के अंतर्गत लाने के उद्देश्य से लाया गया था। आश्चर्य की बात हैं कि छ.ग.रा.वि.कं. का उच्च प्रबंधन अधिनियम की भावना के विपरीत नियामक आयोग जो की रायपुर शहर में स्थित हैं, उससे दूर और मंत्रालय जो कि नवा रायपुर में स्थित हैं, उसके पास जाने की कवायद में लगा हैं। संभवतः इसका एक मात्र उद्देश्य सत्ता केंद्रों को खुश करने का हैं। माननीय आप प्रदेश के आम गरीब जनों से सीधे जुड़े होने के नाते समझ सकते हैं, कि मात्र एक दो उच्च अधिकरीयों की सुविधा के लिए प्रदेश की जनता पर 500 करोड़ का बोझ लादना कतई न्यायोचित नहीं हैं।
देश में कहीं भी बिजली मंडल का मुख्यालय मंत्रालय परिक्षेत्र में नहीं हैं- उपरोक्त संबंध में महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि पूरे भारतवर्ष में किसी भी प्रदेश में बिजली मंडल का मुख्यालय मंत्रालय परिक्षेत्र में नहीं है। कई राज्यों में तो दूसरे शहरों तक में है। मध्यप्रदेश में भोपाल के स्थान पर जबलपुर, गुजरात में गाँधीनगर के स्थान पर वड़ोदरा, पंजाब में चंडीगढ़ के स्थान पर पटियाला, हरियाणा में चंडीगढ़ के स्थान पर पंचकुला में पूर्ववर्ती बिजली मंडलों (वर्तमान में उत्तरवर्ती कंपनियों) का मुख्यालय है। जहाँ पर उसी शहर में है, वहाँ भी मंत्रालय परिक्षेत्र में न होकर शहर के अन्य हिस्से में है। ऐसे में मंत्रालय के निकट बिजली कंपनियों के मुख्यालय होने का तर्क बेबुनियाद है।
विलक्षण बात यह भी है कि किसी भी अधिकारी के पास इसका उत्तर नहीं है कि प्रस्तावित स्थानांतरण का उद्देश्य क्या है ? केवल एक ही जवाब है कि जो कुछ किया जा रहा है वह ऊपर से आदेश के तहत किया जा रहा है। किसी को भी यह नहीं पता कि आखिर “ऊपर से आदेश” का अर्थ क्या है।