हसदेव को बचाने की जंग में शामिल होंगे राकेश टिकैत, आ रहे हैं 13 को
1 min readरायपुर। Chaturpost.com (चतुरपोस्ट.कॉम)
हसदेव अरण्य को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे आदिवासियों और वनवासियों का साथ राकेश टिकैत छत्तीसगढ़ आ रहे हैं। वे यहां 13 फरवरी को यहां होने वाले किसान सम्मेलन में शामिल होंगे। किसानों का यह महा सम्मेलन हरिहरपुर में होगा।
अडानी अंबानी के मुनाफे के लिए मोदी सरकार द्वारा बनाए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ देश के किसानों ने ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी। मेहनतकश किसानों के मजबूत संघर्ष के आगे झुकते हुए केंद्र सरकार को तीनों काले कानून वापस लेना पड़ा। इस राष्ट्रीय किसान आंदोलन के नेतृत्वकारी साथी, किसान नेता राकेश टिकैत हसदेव अरण्य को बचाने चल रहे आदिवासी-किसानों के संघर्ष को समर्थन देने हसदेव के धरना स्थल ग्राम हरिहरपुर पहुंच रहे हैं ।
छत्तीगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला के अनुसार जैसा कि आप जानते हैं कि उत्तर छत्तीसगढ़ के घने वन क्षेत्र हसदेव अरण्य, छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला सांसद के नाम पर बने मिनीमाता बांगो बांध का कैचमेंट क्षेत्र है। इस बांध से जांजगीर, कोरबा, बिलासपुर जिलों की लाखों हेक्टेयर जमीन सिंचित होती है।
जैव विविधता से परिपूर्ण यह विशाल वन क्षेत्र हाथियों का रहवास और उनके आने- जाने का रास्ता है। यहां निवासरत आदिवासियों की आजीविका, संस्कृति और उनके जीवन का प्रमुख आधार भी यही जंगल और जमीन है। विभिन्न अध्ययनों के अनुसार हसदेव अरण्य के निवासियों की वार्षिक आमदनी का 60 प्रतिशत हिस्सा जंगल से आता है।
हसदेव अरण्य पर किए गए अध्ययन में केंद्र सरकार के संस्थान “भारतीय वन्य जीव संस्थान” ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि “यदि हसदेव में किसी भी खनन परियोजना को अनुमति दी गई तो बांगो बांध खतरे में पढ़ जायेगा, उसकी जल भराव की क्षमता कम हो जाएगी। खनन होने से छत्तीसगढ़ में मानव हाथी का संघर्ष इतना ज्यादा बढ़ जाएगा कि फिर उसे कभी नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा”।
इतने महत्वपूर्ण हसदेव वन क्षेत्र को केंद्र की मोदी और राज्य की भूपेश सरकार मिलकर गौतम अडानी की खनन कंपनी को हजारों करोड़ के मुनाफे और उनके निजी बिजली संयंत्रों में अवैध कोयला पहुंचाने के लिए विनाश कर रही है ।
हाल ही में ‘स्क्रोल’ नामक मीडिया समूह ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इसमें बताया गया है कि ‘परसा ईस्ट के बासेन कोयला खदान का लाखों मिलियन टन कोयला कोड़ियों के भाव अडानी कम्पनी के प्लांटो में पहुंचाया जा रहा है’। इसके पूर्व भी वर्ष 2018 में ‘कारवां’ पत्रिका ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि राजस्थान सरकार कोयला उत्खनन ठेका (MDO) के जरिये अडानी समूह को 6 हजार करोड़ का अवैध मुनाफा पहुंचा रही है।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हसदेव अरण्य की कोयला खनन परियोजनाओं को देश हित में बताकर न सिर्फ इसका समर्थन करते है बल्कि पुलिस बल लगाकर आन्दोलन कारी आदिवासियों को जेल में डालकर पेड़ों की कटाई करवा रहे है ।
आप जानते है कि यह क्षेत्र संविधान की पांचवी अनुसूची में आता है। पेसा कानून 1996 और वनाधिकार मान्यता कानून 2006 के तहत किसी भी परियोजना की स्थापना पूर्व भूमि अधिग्रहण और जंगल-जमीन के डायवर्सन के पूर्व ग्रामसभा की अनुमति आवश्यक है।
हसदेव की ग्रामसभाओं के सतत विरोध के बावजूद हसदेव की “परसा कोल ब्लाक एवं परसा ईस्ट के बासेन’ कोयला खनन के दूसरे चरण को गैरकानूनी रूप से अडानी कम्पनी के दबाव में स्वीकृति दी गई । दुखद रूप से आदिवासी हितैषी और वनाधिकार कानून बनाने का दंभ भरने वाली कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद “परसा ” कोल ब्लॉक को समस्त स्वीकृतियां हासिल हुई।
अरण्य को बचाने के लिए पिछले 10 वर्षो से हसदेव के आदिवासी-किसान आन्दोलन कर रहे हैं। अक्टूबर 2021 में हसदेव के ग्रामीणों ने 300 किलोमीटर पदयात्रा कर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात की थी। कोई कार्यवाही नहीं होने पर पिछले साल 2 मार्च 2022 से ग्रामीण अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे हुए हैं।
यह लड़ाई सिर्फ हसदेव के आदिवासी-किसानों की नहीं बल्कि हम सब के जीवन को बचाने की लड़ाई है । यदि हसदेव का जंगल कट गया तो न सिर्फ जीवनदायनी हसदेव नदी सूख जाएगी बल्कि हमारी प्राणवायु आक्सीजन का प्रमुख स्रोत खत्म हो जाएगा।
पिछले 5 वर्षो में 70 से ज्यादा हाथी और सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो चुकी है। किसानों की हजारों हेक्टेयर फसल प्रतिवर्ष हाथियों द्वारा रौंदी जा रही है। बावजूद इसके सिर्फ एक पूंजीपति के लिए पूरे छत्तीसगढ़ को संकट में डाला जा रहा है।
उत्तर छत्तीसगढ़ में हो रहे इस व्यापक विनाश के खिलाफ हसदेव को बचाने के आन्दोलन में आपकी एकजुटता की हम अपील करते हैं। साथ ही 13 फरवरी को आयोजित किसान सम्मेलन में आप की उपस्थिति की अपेक्षा करते है।