CG News: रायपुर। छत्तीसगढ़ में सरकार पर बढ़ता कर्जभार वित्तीय जानकारों के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। राज्य सरकार लगातार कर्ज ले रही है। बीते 6 साल में प्रदेश सरकार ने 70 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज लिया है। पहले कांग्रेस सरकार ने कर्ज लिया और अब भाजपा सरकार भी उसी राह पर है।
सबसे बड़ी चिंता यह है कि राज्य सरकार पुराने लोन जमा करने की बजाय री इशू करा रही है। सितंबर में सरकार ने 500 करोड़ का लोन रीइशू कराया था और अब फिर एक हजार करोड़ रुपये के लोन को री इशू कराने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पास आवेदन लगया है।
छत्तीसगढ़ की विष्णुदेव साय सरकार 9 महीने में 20 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज ले चुकी है। इस लिहाज से सरकार हर महीने करीब 2400 करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज ले रही है। ये आंकड़े केवल आरबीआई के माध्यम से लिए गए कर्ज के हैं। इसके अलावा भी राज्य सरकार अन्य संस्थाओं से कर्ज लेती है।
जानिए… छत्तीसगढ़ सरकार पर कैसे बढ़ रहा कर्ज का भार
छत्तीसगढ़ सरकार पर कुल कर्जभार 1 लाख 17 हजार 779 करोड़ रुपये पहुंच चुका है। विधानसभा के मानसून सत्र के दौरान सरकार की तरफ से दी गई जानकारी में बताया गया था कि 17 दिसंबर 2018 को 41695 करोड़ कुल कर्ज था। यह तारीख 15 साल तक सत्ता में रही डॉ. रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की विदाई का था। इसके बाद प्रदेश में कांग्रेस की सरकार आ गई ।
31 जनवरी 2024 को राज्य सरकार का कर्ज बढ़कर 95754 पहुंच चुका था। बताते चलें कि दिसंबर 2023 में कांग्रेस की सरकार सत्ता से बाहर हो गई थी। विधानसभा में दी गई जानकारी के अनुसार 30 जून 2024 की स्थिति में राज्य पर 114279 का कर्ज था।
इस वर्ष जून के बाद प्रदेश सरकार अब तक तीन बार में 3500 करोड़ रुपये का कर्ज आरबीआई के जरिये ले चुकी है। इसमें 6 अगस्त को 500, 13 अगस्त, 17 सितंबर और 24 सितंबर को एक-एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज शामिल है। अभी फिर एक हजार करोड़ रुपये के कर्ज के लिए सरकार ने आवेदन किया है।
कर्ज को लेकर भाजपा सरकार का तर्क है कि कांग्रेस शासन के दौरान वित्तीय अनुशासन नहीं था। दिसंबर 2024 में जब भाजपा की सरकार सत्ता में आई तो सरकारी खजाना खाली था। इसी वजह से राज्य के विकास के लिए लोना लेना पड़ रहा है। वहीं, वित्त विभाग के एक अफसर का कहना है कि कांग्रेस सरकार के दौरान वित्तीय स्थिति काफी खराब हो गई थी, अब वह धीरे-धीरे पटरी पर आ रही है।
कर्ज की वजह से हिमाचल सरकार की वित्तीय स्थिति बिगड़ने की खबरें हाल ही में काफी चर्चा में रही। वहां राज्य सरकार के पास वेतन देने के लिए भी पैसा नहीं था। इधर, डीए नहीं बढ़ने से नाराज कर्मचारी इस बात की आशंका व्यक्त कर रहे हैं कि कहीं यहां भी हिमाचल जैसी स्थिति होने की आशंका व्यक्त कर रहे हैं।
लेकिन वित्तीय जानकारों का कहना है कि छत्तीसगढ़ और हिमाचल की स्थिति में बहुत अंतर है। छत्तीसगढ़ खनिज संपन्न औद्योगिक राज्य है। प्रदेश सरकार के पास राजस्व प्राप्त करने के अपने संसाधन हैं। ऐसे में वित्तीय स्थिति बिगड़ सकती है, लेकिन इतनी नहीं कि राज्य सरकार को वेतन देने के लाले पड़ जाएं।
बता दें कि सरकारी कर्मचारियों का डीए बढ़ाने का मामला लंबे समय से लंबित है। कर्मचारी 4 प्रतिशत डीए बढ़ने की मांग को लेकर लगातार आंदोलन कर रहे हैं। अभी 27 सितंबर को उन्होंने एक दिवसीय हड़ताल किया था। इसके बाद से सरकार के रुख का इंतजार कर रहे हैं। कर्मचारी नेताओं का कहना है कि अगले कुछ दिनों में सरकार की तरफ से कोई साकारात्मक पहल नहीं की गई तो प्रदेश के कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले जाएंगे।
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