बिजली कंपनी में खेल: 10 रुपये की आर्थिक क्षति पहुंचाने का आरोप लगा कर रोक दी इंजीनियर की पदोन्नलति

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बिजली कंपनी में खेल: 10 रुपये की आर्थिक क्षति पहुंचाने का आरोप लगा कर रोक दी इंजीनियर की पदोन्नलति 1 min read

रायपुर। chaturpost.com (चतुरपोस्‍ट.कॉम)

राज्‍य की सरकारी बिजली कंपनी इंजीनियर को प्रताडि़त करने का एक अनोखा मामला सामने आया है। एक उपभोक्‍ता को 10 रुपये का आर्थिक फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए इंजीनयिर की पदोन्‍नति रोक दी गई।

 

विद्युत अभियंता कल्‍याण संघ के अध्‍यक्ष इंजीनियर एनआर छीपा ने बताया कि कंपनी में पदस्‍थ इंजीनियर गोपाल प्रसाद साहू की पदोन्‍नति 2021 में हो गई थी, लेकिन उनकी पदोन्‍नति 2019 की एक विभागीय जांच में महाप्रबंधक मानव संसाधन ने अपने आदेश क्रमांक 3278 दिनांक 23‍ सितंबर 2022 के माध्‍यम से चेतावनी (दंड की परिधि में नहीं) के माध्‍यम से खत्‍म कर दिया था।

इसके बाद कंपनी के आदेश क्रमांक 554 दिनांक 18 अगस्‍त 2022 के माध्‍यम से गोपाल प्रसाद साहू को पदोन्‍नति दी गई लेकिन पूर्वाग्रह से ग्रसित हो कर मुख्‍य अभियंता राजनांदगांव क्षेत्र ने अपने पत्र क्रमांक 686 दिनांक दो अगस्‍त 2022 के माध्‍यम से 10 रुपये उपभोक्‍ता को अनाधिकृत रुप से लाभ पहुंचाने से कंपनी को 10 रुपये की आर्थिक क्षति पहुंचाने के संबंध में दिनांक दो अगस्‍त 2022 को जारी किया गया जिसके कारण उनका पदोन्‍नति आदेश रोक दिया गया। इससे स्‍पष्‍ट होता है कि संघ सदस्‍यों को जानबूझ कर आरोप पत्र-कारण बताओं नोटिस देकर उनको प्रताडि़त किया जा रहा है।

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चर्चा से करा रहा है प्रबंधन

इंजीयिर छीपा ने बताया कि बिजली कंपनियों में प्रबंधन और अधिकारियों- कर्मचारियों के बीच संवादहिनता की स्थिति निर्मित हो गई है। कर्मचारियों की समस्‍याओं को प्रबंधन द्वारा सुना नहीं जा रहा है। प्रबंधन कर्मचारियों-अधिकारियों के साथ बैठक करने से कतराते हैं। विद्युत अभियंता कल्‍याण संघ ने प्रबंधन से अध्‍यक्ष स्‍तरीय द्वपिक्षीय बैठक के लिए समय जुलाई 2021 में मांगा था, लेकिन डेढ़ वर्ष व्‍यतीत होने के बाद भी संगठन के अध्‍यक्ष महोदय से द्विपक्षीय चर्चा के लिए समय नहीं मिला है।

10-10 वर्ष से लंबित है विभागीय जांच

संघ के अनुसार विभागीय जांच में देर व निष्‍पक्षता के संबंध में- वर्तमान में पूरे प्रदेश में लगभग डेढ सौ विभागीय जांच अभियंताओं के लंबित हैं जिन्‍हें पांच-पांच और 10-10 वर्ष हो गए हैं, जबकि शासन और प्रबंध के नियमानुसार विभागीय जांच एक वर्ष में पूरा करना है। कई अधिकारी सरकार के‍ नियमों का पालन न कर संघ सदस्‍यों को तरह-तरह से प्रताडि़त करते हैं।

बिजली कंपनी में खत्‍म कर दी गई है समूह बीमा योजना

इंजीनियर छीपा ने बताया कि मध्‍य प्रदेश के समय से बिजली कंपनी में ग्रुप टर्मस इंश्‍योरेंस GTIS चल रहा था। इसमें कुछ बदलाव करते हुए छत्‍तीसगढ़ में दिनांक एक जनवरी 2002 से ग्रुप सेविंग लिंक इंश्‍योरेंस स्‍कीम समूह GSLIS बचत सह बीमा योजना लागू की गई थी, जो लगातार छत्‍तीसगढ़ में बिजली कंपनी में चल रही थी।

इस स्‍कीम के तहत कर्मचारी- अधिकारी की सेवा के दौरान मृत्‍यु पर उनके परिजन प्रथम श्रेणी अधिकारी नौ लाख, द्वितीय श्रेणी अधिकारी को छह लाख, तृतीय श्रेणी कर्मचारी को 4.5 लाख और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के परिजनों को दो लाख मिलता था। साथ ही कटौती का कुछ बचत अंश ब्‍याज सहित कर्मचारी की मृत्‍यु के बाद या सेवानिवृत्‍त होने पर दिया जाता था।

बिजली ने 31 मार्च 2021 से अचानक बिना पूर्व सूचना के इस योजना को बंद कर दिया गया। इसे 31 मार्च 2021 के बाद कर्मचारी- अधिकारी की होने वाली मृत्‍यु पर समूह बीमा न होने के कारण कोई राशि उनके परिजन को नहीं मिल पा रही है। 31 मार्च 2021 तक जमा आंशिक राशि का भुगतान भी मुख्‍यालय में पदस्‍थ चंद कर्मचारियों को छोड़कर अधिकांश कर्मचारियों-अधिकारियों को भुगतान नहीं हुआ है। वहीं, जिन्‍हें भुगतान हो भी गया है उसमें विसंगतियां है जिनका निराकरण नहीं किया जा रहा है।

बिजली कंपनी में कैश लेस मेडिक्‍लेम सुविधा भी समाप्‍त

इंजीनियर छीपा ने बताया कि केंद्र सरकार की स्‍वास्‍थ्‍य योजना के अनुसार कर्मचारियों को आजीवन नि:शुल्‍क चिकित्‍सा सुविधा का प्रावधान है। इसके अनुरुप 2015 में बिजली कंपनी द्वारा विभिन्‍न संघों- संगठन के प्रतिनिधियों के साथ बैठक कर निर्णय लिया गया था कि बिजली कंपनी में कैश लेस मेडिक्‍लेम सुविधा उपलब्‍ध कराई जाएगी।

वर्तमान में बिजली कंपनी में जो स्‍वास्‍थ्‍य योजना लागू है जो बहुत ही जटिल है जिससे कंपनी के 20-25 प्रतिशत कर्मचारी ही लाभ ले पाते हैं बाकी कर्मचारी इससे वंचित रह जाते हैं इ‍सलिए प्रस्‍तावित कैश लेस मेडिक्‍लेम सुविधा की योजना में बिजली कंपनी में कार्यरत व सेवानिवृत्‍त सभी कर्मचारी- अधिकारी शामिल किए जाएंगे। इस योजना के संबंध में तरह-तरह की भ्रांतियां फैलाई जा रही है लेकिन सात-आठ वर्ष बीतने के बाद भी उसे लागू नहीं किया गया है।

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