History of Naxalism रायपुर। छत्तीसगढ़ का बस्तर अंचल, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, दशकों से नक्सलवाद के साये में जी रहा है। नक्सलवाद ने बस्तर के विकास को अवरुद्ध किया, ग्रामीणों को भय और हिंसा के माहौल में जीने को मजबूर किया और हजारों निर्दोष जिंदगियों को छीन लिया। इस लेख में नक्सलियों द्वारा बस्तर में आम नागरिकों के खिलाफ की गई हिंसक कार्रवाइयों का उल्लेख करते हुए, वर्तमान में चल रहे नक्सल उन्मूलन अभियान और इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
नक्सलवाद, जो 1960 के दशक में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी गांव से शुरू हुआ, धीरे-धीरे छत्तीसगढ़ के बस्तर जैसे आदिवासी क्षेत्रों में फैल गया। नक्सलियों ने सामाजिक-आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का दावा किया, लेकिन उनकी हिंसक गतिविधियों ने आम आदिवासियों और ग्रामीणों को ही सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया। बस्तर में नक्सलियों ने स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों और बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं को निशाना बनाया, जिससे क्षेत्र का विकास ठप हो गया।
नक्सलियों ने न केवल सरकारी तंत्र को चुनौती दी, बल्कि निर्दोष ग्रामीणों को भी अपनी हिंसा का शिकार बनाया। वे अक्सर ग्रामीणों पर पुलिस मुखबिरी का आरोप लगाकर उनकी हत्या करते थे। स्कूलों को बम से उड़ाया गया, शिक्षकों को धमकाया गया, और युवाओं को जबरन हथियार उठाने के लिए मजबूर किया गया। इस तरह नक्सलवाद ने बस्तर को शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे अवसरों से वंचित रखा।
बस्तर में वर्ष 2005 में नक्सलवाद के खिलाफ सलवा जुडूम नामक एक जन आंदोलन शुरू हुआ, जिसका उद्देश्य स्थानीय लोगों को नक्सलियों के खिलाफ संगठित करना था। इस अभियान के दौरान नक्सलियों ने अपनी हिंसा को और बढ़ा दिया। सलवा जुडूम कैंपों में रह रहे ग्रामीण, जो अपनी सुरक्षा और आजीविका के लिए इन कैंपों में आए थे, नक्सलियों के निशाने पर रहे। नक्सलियों ने इन कैंपों पर हमले किए, ग्रामीणों को अगवा किया और उनकी बेरहमी से हत्या की।
एक ऐसी ही दिल दहलाने वाली घटना 25 अप्रैल 2006 को सुकमा जिले के थाना एर्राबोर से लगभग 12 किलोमीटर दूर मनीकोंटा में घटित हुई। मनीकोंटा के ग्रामीण जो उस समय दोरनापाल के सड़वा जुडूम कैंप में रह रहे थे। अपना घरेलू समान लेने के लिए 58 ग्रमीणजन पैदल अपने गांव जा रहे थे तब 100-125 नक्सलियों ने उन्हें अगवा कर लिया और उन्हें जंगल में ले जाकर धारदार हथियारों से 15 ग्रामीणों की निर्मम हत्या कर उनके शवों को राष्ट्रीय राजमार्ग पर फेंक दिया था। नक्सलियों द्वारा बस्तर के ग्रामीणों की हत्या का सिलसिला अभी भी थम नहीं है। मुखबिरी के आरोप में नक्सली आये दिन बेकसूर ग्रामीणों का गला रेत रहे है।
आदिवासियों के हितैषी और उनकी जान-माल की रक्षा का दंभ भरने वाले नक्सलियों ने सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासियों को ही पहुंचाया है। उन्होंने ग्रामीणों पर पुलिस का साथ देने का आरोप लगाकर उनकी हत्याएं कीं, घरों को जलाया और लोगों को उनके गांवों से भागने के लिए मजबूर किया।
नक्सली संगठन जब मन में आया गांवों में जन अदालत लगाते और उल्टे-सीधे आरोप लगाकर ग्रामीणों की बेदम पिटाई की, घर फूंक दिया, दो-चार का गला रेत दिया। नक्सलियों ने सलवा जुडूम के दौरान कई अन्य गांवों में भी हमले किए। इसका सबसे बड़ा खामियाजा निर्दोष आदिवासियों को भुगतना पड़ा। अभी हाल ही में दंतेवाड़ा में एक सरपंच प्रत्याशी की हत्या कर दी गई, क्योंकि वे पंचायत चुनाव में हिस्सा ले रहे थे। नक्सलियों ने न केवल हत्याएं कीं, बल्कि ग्रामीणों को डराने के लिए लैंडमाइंस और आईईडी का इस्तेमाल किया। इन हमलों में कई बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग भी अपनी जान गंवा चुके हैं।
नक्सलवाद ने बस्तर को आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ा बना दिया। नक्सलियों ने शिक्षा को निशाना बनाया। स्कूलों को ढहाया और शिक्षकों को धमकाया गया। इससे आदिवासी बच्चों को शिक्षा से वंचित होना पड़ा। अस्पतालों और स्वास्थ्य कर्मियों को निशाना बनाया, जिससे ग्रामीणों को बुनियादी चिकित्सा सुविधाएं भी नहीं मिलीं। सड़कों, पुलों और मोबाइल टॉवर, बिजली लाइनों को नष्ट किया, जिससे बस्तर विकास की मुख्यधारा से कट गया। नक्सलियों ने युवाओं को भ्रमित कर उन्हें हथियार उठाने के लिए मजबूर किया, जिससे कई परिवार अपने बच्चों को खो बैठे।
वर्तमान में छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र सरकार ने नक्सलवाद को जड़ से खत्म करने के लिए अभूतपूर्व कदम उठाए हैं। मार्च 2026 तक नक्सलवाद को पूरी तरह समाप्त करने का लक्ष्य है। बस्तर में अभी नक्सल उन्मूलन अभियान जोर-शोर से संचालित है। बस्तर में 60 से अधिक नए सुरक्षा कैंप खोले गए हैं, जो नक्सलियों की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और ग्रामीणों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। बीते 14 महीनों में सुरक्षा बलों ने विभिन्न मुठभेड़ों में लगभग 360 नक्सलियों को मार गिराया है। 1188 से अधिक नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया और करीब 1300 को गिरफ्तार किया गया है।
छत्तीसगढ़ सरकार की नई नक्सलवादी आत्मसमर्पण नीति 2025 के तहत आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को प्रोत्साहन राशि, शस्त्र के बदले मुआवजा, घोषित ईनाम की राशि, प्रशिक्षण, रोजगार और सम्मानजनक जीवन की गारंटी दी जा रही है। नियद नेल्लानार और लोन वर्राटू जैसी योजनाओं के तहत बस्तर के गांवों में सड़क, बिजली, स्कूल और अस्पताल जैसी सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं।
आज बस्तर का आदिवासी समाज नक्सलवाद के खिलाफ जाग चुका है। ग्रामीण शासन-प्रशासन के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बस्तर के विकास के लिए काम कर रहे हैं। सुरक्षा कैंपों के माध्यम से गांवों में विकास का पहिया तेजी से घूम रहा है। स्कूल फिर से खुल रहे हैं, बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं, और युवा हिंसा के बजाय विकास की राह चुन रहे हैं।
नक्सलवाद के खिलाफ लड़ाई केवल सुरक्षा बलों की जिम्मेदारी नहीं है। इसके लिए समाज के हर वर्ग को जागरूक होना होगा और आगे आना होगा। नक्सलियों की हिंसक कार्रवाइयों का इतिहास बताता है कि वे विकास और शांति के दुश्मन हैं। बस्तर के लोगों ने नक्सलवाद के कारण अपनों को खोया है, अपने गांवों को उजड़ते देखा है। अब समय है कि हम सब मिलकर नक्सलियों की क्रूरता का विरोध और सरकार की नीति व विकास योजनाओं का समर्थन करें, ताकि बस्तर हर क्षेत्र में प्रगति कर सके।
बस्तर में नक्सलवाद ने दशकों तक निर्दोष लोगों को पीड़ा दी, लेकिन अब यह अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। दोरनापाल की 2006 की घटना जैसी त्रासदियां हमें याद दिलाती हैं कि नक्सलियों ने बस्तर के लोगों के साथ कितना अन्याय किया। आज सुरक्षा बलों की कार्रवाइयों और सरकार की विकास योजनाओं ने नक्सलियों को घुटनों पर ला दिया है। बस्तर का आदिवासी समाज अब शांति और समृद्धि की ओर बढ़ रहा है। हम सबको मिलकर इस अभियान को और मजबूत करना होगा, ताकि बस्तर नक्सल मुक्त होकर विकास की नई ऊंचाइयों को छू सके।