Rice Mill: छत्‍तीसगढ़ में राइस मिलों पर संकट, पढ़‍िए- पूरी स्थिति पर राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष का यह लेख

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Rice Mill: छत्‍तीसगढ़ में राइस मिलों पर संकट, पढ़‍िए- पूरी स्थिति पर राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष का यह लेख

Rice Mill: रायपुर। छत्‍तीसगढ़ में राइस मिलों की स्थित‍ि और राइस मिल संचालकों की स्थिति पर राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्‍यक्ष योगेश अग्रवाल ने एक बयान जारी किया है। इसमें योगेश अग्रवाल ने कहा कि छत्तीसगढ़ की चावल मिलें, जो कभी राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार थीं, आज अधिकारियों के अहंकार की बलि चढ़ रही हैं। सरकारी धन, जो मिलर्स की समस्याओं को हल करने और उद्योग को मजबूत बनाने में खर्च होना चाहिए, उसे अधिकारियों के व्यक्तिगत अहंकार और गैरजरूरी परियोजनाओं पर बर्बाद किया जा रहा है।

ऐसा लगता है मुठ्ठी भर अधिकारी पूरे तंत्र के मालिक बन बैठे हैं।छत्तीसगढ़ के चावल उद्योग पर आज जो संकट मंडरा रहा है, उसका कारण नीतियों की कमी नहीं, बल्कि अधिकारियों का अहंकार है। ऐसा लगता है कि इन अधिकारियों ने राइस मिलों के खिलाफ कोई व्यक्तिगत दुश्मनी पाल ली है।

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Rice Mill योजनाएं ऐसी बन रही हैं मानो मिलर्स उनके दुश्मन हों और चावल उद्योग को बर्बाद करना उनका मिशन।यह अहंकार का खेल है, जहां हर अधिकारी अपनी कुर्सी की ताकत दिखाने में लगा है। चावल मिलर्स, जो राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूती देते हैं, अब उनके लिए महज एक मोहरा बन गए हैं। हर फैसला, हर आदेश ऐसा लगता है जैसे अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए लिया गया हो।

चाहे वह अनुचित निरीक्षण हो, गैर-व्यावहारिक नीतियां हों, या फिर अनावश्यक जुर्माने—हर कदम यह दर्शाता है कि उन्हें अपने अधिकार का प्रदर्शन करना है, भले ही इससे उद्योग को कितना भी नुकसान हो।

Rice Mill सवाल उठता है: चावल मिलों से ऐसी दुश्मनी क्यों? क्या इन अधिकारियों को यह नहीं दिखता कि चावल उद्योग न केवल हजारों लोगों को रोजगार देता है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था की रीढ़ भी है? या फिर अहंकार ने उनकी दृष्टि को पूरी तरह धुंधला कर दिया है?

Rice Mill मिलर्स रोज नई चुनौतियों से जूझ रहे हैं—कभी नीतियों में बदलाव, कभी मनमानी निरीक्षण, और कभी अनावश्यक जुर्माने। पर अधिकारियों का ध्यान इन समस्याओं को सुलझाने के बजाय अपने अहंकार की संतुष्टि पर है।

ऐसा लगता है कि उनके फैसले चावल उद्योग को सुधारने के लिए नहीं, बल्कि इसे कमजोर कर बर्बाद करने के लिए लिए जा रहे हैं।

यदि यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो छत्तीसगढ़ के चावल उद्योग की नींव हिल जाएगी। यह समय है कि अधिकारी अपने अहंकार को छोड़कर उद्योग के हित में सोचें, वरना आने वाली पीढ़ियां केवल इस बर्बादी की कहानियां ही सुनेंगी।

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