रायपुर। chaturpost.com (चतुरपोस्ट.कॉम)
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीगढ़ के सरगुजा संभाग स्थित हसदेव अरण्य (वन क्षेत्र) से राजस्थान सरकार को कोयला खनन की अनुमति दे दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कोयला खनन पर रोक लगाने के लिए दायर याचिका को सोमवार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि- हम विकास के रास्ते में नहीं आएंगे।
कोर्ट के इस आदेश से कोयला खनन के विरोध में आंदोलन कर रहे आदिवासी को झटका लगा है। कोयला खदान का आवंटन रद करने की मांग वाली याचिका को अंतरिम खारिज करते हुए न्यायमूर्ति बीआर गवई और विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि हम विकास के रास्ते में नहीं आना चाहते हैं और हम इस पर बहुत स्पष्ट हैं। हम कानून के तहत आपके अधिकारों का निर्धारण करेंगे लेकिन विकास की कीमत पर नहीं। हम किसी भी परियोजना को तब तक नहीं रोकेंगे जब तक कि अवैधता बड़ी न हो। पीठ ने अपने आदेश में यह भी स्पष्ट किया कि छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य में परसा कोयला ब्लॉक के लिए भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं के लंबित रहने को, कोयला खनन गतिविधियों के खिलाफ किसी भी तरह के प्रतिबंध के रूप में नहीं माना जाएगा।
केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने जुलाई 2019 में ही परसा कोयला खदान को पर्यावरणीय मंजूरी दी थी। इसके साथ ही इसका विरोध शुरू हो गया था। हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति व ग्रामीणों का आरोप है जिस प्रस्ताव के आधार पर यह स्वीकृति दी गई है वह ग्राम सभा ही फर्जी थी। ग्राम सभा में इस परियोजना का विरोध हुआ था। इस विरोध के बावजूद फरवरी 2020 में केंद्रीय वन मंत्रालय ने परसा कोयला खदान के लिए पहले चरण को मंजूरी दे दी। अक्टूबर 2021 में इस परियोजना के लिए दूसरे चरण मंजूरी जारी कर दी गई। छह अप्रैल 2022 को छत्तीसगढ़ सरकार ने भी वन भूमि देने की अंतिम मंजूरी दे दी।
कोयला खदान का विरोध कर रहे ग्रामीणों की मांग का सरकार के मंत्री टीएस सिंहदेव सहित सत्तारुढ़ पार्टी के कई नेता भी समर्थन कर रहे हैं। इसे देखते हुए राज्य सरकार ने दो महीने पहले केंद्र सरकार को पत्र लिखकर आवंटन निरस्त करने की मांग की है। वन विभाग के अवर सचिव केपी राजपूत ने केंद्रीय वन मंत्रालय को लिखे पत्र में बताया कि हसदेव अरण्य कोल फील्ड में व्यापक जनविरोध के कारण कानून व्यवस्था की स्थिति निर्मित हो गई है। ऐसे में जनविरोध, कानून व्यवस्था और व्यापक लोकहित को ध्यान में रखते हुए 841 हेक्टेयर की परसा खुली खदान परियोजना के लिए जारी वन भूमि डायवर्शन स्वीकृति को निरस्त करने का कष्ट करें।
प्रदेश सरकार ने विधानसभा में हसदेव अरण्य स्थित कोयला खदान का आवंटन निरस्त करने का अशासकीय संकल्प पारित कर चुकी है। इस अशासकीय संकल्प में केंद्र सरकार से हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान परियोजनाओं का आवंटन निरस्त करने की मांग की गई है।
राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को सरगुजा व सूरजपुर वन मंडल की 841.538 हेक्टेयर वन भूमि कोयला खनन के लिए आवंटित की गई है। ओपनकास्ट माइनिंग के माध्यम से इस खदान से पांच लाख टन प्रति वर्ष कोयला उत्पादन होगा।
परियोजना से प्रभावित हो रहे हसदेव अरण्य को बचाने के लिए वर्षों से संघर्ष कर रहे छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के आलोक शुक्ला का कहना है कि सरकार ने परसा कोयला खदान के साथ परसा ईस्ट केंते बासन एक्सटेंशन खदान के दूसरे चरण को भी मंजूरी दे दी है। इसकी वजह से एक लाख 70 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में समृद्ध जैव विविधता वाला जंगल बर्बाद हो जाएगा। इसका असर नदियों पर भी पड़ेगा। सैकड़ों लोगों को अपने गांव से उजड़ना पड़ेगा। इसकी भरपाई कभी भी नहीं हो पाएगी।
राजस्थान राज्य विद्युत निगम को आवंटित इस कोयला खदान से खनन का ठेका अडानी की कंपनी को मिली है। यह खदान राजस्थान सरकार के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इसी वजह से राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत वहां खनन की अनुमति देने का अग्रह लेकर कुछ महीने पहले छत्तीगढ़ आए थे। राजस्थान सरकार का कहना है कि यदि वहां से शीघ्र कोयला नहीं निकाला गया तो राजस्थान को गंभीर बिजली संकट का सामना करना पड़ेगा।
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