Arpa-Bhainsajar रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने भ्रष्टाचार का एक और मामला आर्थिक अपराध अन्वेषण ब्यूरो (ईओडब्ल्यू) को सौंपा जाएगा। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के निर्देश के बाद मामला ईओडब्ल्यू को सौंपने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। यह मामला भी जमीन मुआवजा में भ्रष्टाचार से जुड़ा है।
यह मामला अरपा-भैंसाझार नहर परियोजना से जुड़ा है। करीब 1131 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में 48 गुना मुआवजा देने का आरोप है, वह भी ऐसे लोगों को जिनकी जमीन नहर के लिए ली ही नहीं गई है। वहीं, जिन किसानों की जमीन नहर में आई है उन्हें मुआवजा दिया ही नहीं गया है।
पूरे मामले का खुलासा एक किसान की शिकायत के बाद हुआ। जमीन अधिग्रहण के लिए मुआवजा वितरण के बाद नजर निर्माण का काम शुरू हुआ।
विभाग का जेसीबी एक किसान की जमीन खोदने पहुंची तो वह भागता हुआ कलेक्टर के पास पहुंच गया। फरियाद की कि जमीन अधिग्रहण की न तो सूचना दी गई है और न ही मुआवजा मिला है। इसके बाद कलेक्टर ने पूरे मामले की जांच कराई।
जांच में राजस्व विभाग के छह और जल संसाधन विभाग के पांच अधिकारी और कर्मचारी इस भ्रष्टाचार के लिए दोषी पाए गए हैं। इनमें कोटा के दो तत्कालीन एसडीएम शामिल हैं। इनके नाम आनंदरुप तिवारी और कीर्तिमान सिंह राठौर है। वहीं, नायब तहसीलदार मोहरसाय सिदार, आरआई हुल सिंह के साथ पटवारी दिलशाद अहमद और सकरी के पटवारी मुकेश साहू भी दोषी पाए गए हैं।
राजस्व विभाग के साथ ही जल संसाधन विभाग के अधिकारी भी इस मामले में दोषी पाए गए हैं। इनमें कोटा के तत्कालीन ईई आरएस नायडू, एके तिवारी के साथ तत्कालीन कोटा एसडीओ राजेंद्र प्रसाद मिश्रा, तखतपुर एसडीओ आरपी द्विवेदी के अलावा सब इंजीनियर तखतपुर आरके राजपूत शामिल हैं।
बताया जा रहा है कि पूरे मामले में कलेक्टर ने बिलासपुर संभाग आयुक्त को पत्र लिखकर दोषी अफसरों पर कार्यवाही की अनुशंसा की थी। इसके आधार पर संभाग आयुक्त ने भी राजस्व विभाग और जल संसाधन विभाग को कार्यवाही के लिए पत्र भेजा था, लेकिन दोनों विभाग ने कार्यवाही नहीं की और पूरा मामला दबा दिया गया।
पूरे मामले में करीब 400 करोड़ रुपए का भ्रष्टाचार हुआ है। पूर मामला कोरोनाकाल के दौरान का है। बीते दिनों मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जल संसाधन विभाग के कार्यों की समीक्षा की। इस दौरान भ्रष्टाचार का यह मामला भी सीएम के सामने आया। इस पर मुख्यमंत्री ने तत्काल पूरे मामले की ईओडब्ल्यू से जांच कराने का निर्देश दिया। इसके आधार पर प्रक्रिया शुरू हो गई है।
जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट के अनुसार पूरा खेल पटवारी मुकेश साहू और कोटा के तत्कालीन एसडीएम आनंदरूप तिवारी ने अन्य लोगों के साथ मिलकर किया।
आरोप है कि पटवारी मुकेश साहू ने दस्तावेजों में हेराफेरी करके नहर के एलाइमेंट को ही कागजों में बदल 200 मीटर आगे खिसका दिया।
रिकार्ड में बताया गया कि नहर पवन अग्रवाल की बंजर जमीन से निकलेगी। पवन अग्रवाल कारोबारी मनोज अग्रवाल के पिता हैं। इस तरह 3.42 करोड़ रुपए मुआवजा अग्रवाल को दे दिया गया।
इतना ही नहीं मुआवजा की राशि बढ़ाने के लिए अग्रवाल की बंजर जमीन को रिकार्ड में दो फसली बता दिया गया। इसी तरह पूरा खेल हुआ। इस बीच दोनों एसडीएम पर कार्यवाही करने की बजाय उन्हें आरटीओ बना दिया गया।