CG Safarnama:… माफ नहीं करती छत्तीसगढ़ की जनता… एक गलती से तबाह हो गया इन 12 दिग्ग ज नेताओं का राजनीतिक करियर

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CG Safarnama:… माफ नहीं करती छत्तीसगढ़ की जनता… एक गलती से तबाह हो गया इन 12 दिग्ग ज नेताओं का राजनीतिक करियर 1 min read

CG Safarnama: रायपुर। किसी भी इंसान का किस्‍मत साथ दे तो वह कुछ भी करे सब अच्‍छा होता है। कहते हैं किस्‍मत का धनी मिट्टी को भी हाथ लगा दे तो वो सोना हो जाता है, लेकिन किस्‍मत का साथ लंबे समय तक या हमेशा मिले यह जरुरी नहीं है। राजनीति के मैदान में भाग्‍य का खेल कुछ ज्‍यादा ही चलता है। छत्‍तीसगढ़ में ऐसे किस्‍मत के धनवान कई नेता है।

राज्‍य निर्माण के समय भी ऐसे कई दिग्‍गज नेता थे, जिन्‍हें जनता से ज्‍यादा भाग्‍य का साथ मिलता था। इनमें से कुछ नेताओं ने ऐसा कुछ किया कि उनमें से ज्‍यादतर को फिर न तो भाग्‍य और साथ मिला और न जनता का। इन नेताओं का राजनीतिक करियर पूरी तरह तबाह हो गया।

हम बता कर रहे हैं छत्‍तीसगढ़ के इतिहास के सबसे बड़े दलबदल की। सत्‍ता का सूख पाने के लिए 12 नेताओं ने एक साथ पाला बदल लिया था। इस बड़े दलबदल ने प्रदेश ही नहीं देश की भी राजनीति में एक बड़ी बहस को जन्‍म दिया, जिसके बाद तत्‍कालीन केंद्र सरकार ने दलबदल कानून में बड़ा बदलाव किया।

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CG Safarnama: राज्‍य निर्माण के तुरंत बाद 13 भाजपा विधायक कांग्रेस में हुए थे शामिल

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य बनने के बाद पहले ही साल में भाजपा के 13 विधायकों ने दलबदल करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए थे। भाजपा की तरफ से पाला बदलने की शुरुआत रामदयाल उइके ने की। उइके 1998 में मरवाही सीट से भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे। राज्‍य बनने के बाद उन्‍होंने तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री अजीत जोगी के लिए अपनी सीट खाली कर दी।

चूंकि अजीत जोगी छत्‍तीसगढ़ के मुख्‍यमंत्री तो बन गए थे, लेकिन वे विधानसभा के सदस्‍य नहीं थे। ऐसे में उन्‍हें किसी एक सीट से चुनाव लड़न था। ऐसे में उइके ने जोगी के लिए अपनी सीट छोड़ दी।

CG Safarnama: 12 विधायकों ने एक साथ छोड़ी पार्टी

इसके बाद भाजपा के 12 विधायकों ने एक साथ पार्टी छोड़ी। भाजपा के अजेय और दिग्‍गज नेताओं में शामिल तरुण चटर्जी के नेतृत्‍व में इन 12 विधायकों ने पहले अलग पार्टी बनाई फिर उस पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया। कांग्रेस प्रवेश करने वाले इन 12 विधायकों में से कई मंत्री बनाए गए। 2003 तक इन लोगों ने सत्‍ता का सुख भोगा, लेकिन 2003 का विधानसभा चुनाव हार गए। 12 में से कुछ ही विधायक ऐसे हैं जो दूसरी बार विधानसभा पहुंच पाए। इस दलबदल के बाद अधिकांश का राजनीतिक करियर खत्‍म हो गया।    

CG Safarnama: इन 12 भाजपा विधायकों ने किया था दलबदल

भाजपा से कांग्रेस में जाने वाले विधायकों में पहला नाम तरुण चटर्जी का था। चटर्जी रायपुर ग्रामीण सीट से लगातार चुनाव जीत रहे थे, हर बार उनका अंतर बढ़ता जा रहा था। जोगी सरकार में इन्‍हें पीडब्‍ल्‍यूडी मंत्री बनाया गया था। श्यामा ध्रुव, मदन डहरिया, गंगूराम बघेल, प्रेम सिदार, लोकेन्द्र यादव, विक्रम भगत, शक्राजीत नायक, डॉ. हरिदास भारद्वाज, रानी रत्नमाला, डॉ. सोहनलाल और परेश बागबहरा शामिल थे।

CG Safarnama: जानिए.. कैसे खत्‍म हो गया राजनीतिक करियर

तरुण चटर्जी :  तरुण चटर्जी को रायपुर ग्रामीण का अजेय योद्धा माना जाता था। चटर्जी ने विधानसभा का पहला चुनाव 1980 में लड़ा था।  यह चुनाव उन्‍होंने कांग्रेस की टिकट पर लड़ा और विधायक चुने गए। बाद में वे कांग्रेस छोड़कर जनता दल फिर भाजपा में पहुंचे। इस दौरान 1998 तक वे लगातार विधानसभा का चुनाव जीतते रहे। इस दौरान वे रायपुर के मेयर भी चुने गए। विधायक के साथ चटर्जी ने मेयर का भी पद संभाला।

दलबदल करने के बाद 2003 में वे कांग्रेस की टिकट पर फिर रायपुर ग्रामीण सीट से चुनाव लड़े, उनके सामने भाजपा ने राजेश मूणत के रुप में युवा और नए चेहरे को टिकट दिया। चटर्जी यह चुनाव लंबे अंतर से हार गए। इसके बाद उन्‍होंने फिर कभी चुनाव नहीं लड़ा। 

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गंगूराम बघेल : रायपुर की आरंग सीट से दो बार विधायक चुने गए। पहले 1993 फिर 1998 में एमपी विधानसभा पहुंचे। 2003 के चुनाव में कांग्रेस ने उन्‍हें टिकट दिया, लेकिन वे हार गए। इसके बाद वे राजनीति में सक्रिय रहे, लेकिन कभी चुनाव नहीं जीत पाए।

मदन डहरिया : बिलासपुर की मस्‍तूरी सीट से 1998 में विधायक चुने गए थे। कांग्रेस प्रवेश के बाद उन्‍हें दो बार विधानसभा चुनाव लड़ने का मौका मिला। कांग्रेस ने 2003 के बाद 2008 में भी टिकट दिया, लेकिन डहरिया दोनों चुनाव हार गए।

श्यामा ध्रुव : श्‍यामा ध्रुव 1998 में भाजपा की टिकट पर कांकेर सीट से विधायक चुनी गई। 2003 में टिकट मिला, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।

प्रेम सिंह सिदार : लैलूंगा सीट से भाजपा की टिकट पर 1993 और 1998 में चुनाव जीते थे। कांग्रेस ने 2003 में फिर इसी सीट से टिकट दिया, लेकिन वे हार गए।

लोकेन्द्र यादव : यादव ने कांग्रेस में जाने के बाद फिर एक बार दलबदल किया, लेकिन वे चुनाव जीत नहीं पाए। 1998 में वे बालोद सीट से विधायक चुने गए थे। पार्टी बदलने के बाद कांग्रेस ने 2003 का चुनाव इसी सीट से लड़ाया, लेकिन हार गए। 2008 में वे सपा की टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन जीत नहीं पाए।

विक्रम भगत : जशपुर सीट से लगातार भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे। 19984 में पहला चुनाव लड़ने वाले विक्रम भगत को कांग्रेस ने 2003 में जशपुर सीट से ही टिकट दिया, लेकिन वे भी हार गए।

डॉ. शक्राजीत नायक : पार्टी बदलने के बाद जोगी सरकार में मंत्री बनने वालों में नायक भी शामिल थे। नायक 1998 में सरिया सीट से चुनाव जीते थे। डॉ. नायक कांग्रेस की टिकट पर भी 2003 और 2008 का चुनाव जीते थे। 2013 में उन्‍हें हार का सामना करना पड़ा।

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डॉ. हरिदास भारद्वाज : भारद्वाज भाजपा की टिकट पर 1998 में विधायक चुने गए थे। कांग्रेस प्रवेश के बाद 2008 में वे सरायपाली सीट से फिर निर्वाचित हुए, लेकिन 2013 का चुनाव हार गए।

रानी रत्नमाला : चंद्रपुर की रानी रत्‍नमाला भाजपा की टिकट पर इस सीट से 1998 में चुनाव जीती थीं। कांग्रेस प्रवेश के बाद उन्‍होंने विधानसभा का चुनाव नहीं लड़ा।

डॉ. सोहनलाल : डॉ. सोहन लाल सामरी विधानसभा सीट से 1998 में भाजपा की टिकट पर विधायक चुने गए थे। 2003 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया। इसके बाद उन्‍हें कभी टिकट ही नहीं मिल पाया।

परेश बागबाहरा : उप चुनाव के जरिये विधायक बने परेश बागबाहरा 1999 में उप चुनाव जीता था। 2003 में इन्‍हें टिकट नहीं मिला, लेकिन 2008 के चुनाव में कांग्रेस ने उन्‍हें खल्‍लारी सीट से टिकट दिया। परेश ने जीत दर्ज की, अगला चुनाव वे नहीं जीत पाए। इस बीच परेश ने जोगी कांग्रेस ज्‍वाइन कर लिया। इसके बाद फिर से भाजपा में लौट गए।

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